Wednesday, April 17, 2024

रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं


 राम नवमी की  हार्दिक शुभकामनाएं


दर्शन चिंतन राम का,हो जीवन आधार।

आत्मसात कर मर्म को,मर्यादा ही सार।।


बसी राम की उर में मूरत 

मन अम्बर कुछ डोल रहा है


मुखमंडल की आभा ऐसी,

दीप्ति सूर्य की चमके जैसी।

बंद नयन में तुमको पाया,

आठ याम की लगन लगाया।

इस पनघट पर घट था रीता

ज्ञान चक्षु वो खोल रहा है।

बसी  राम की उर में मूरत ,

मन अम्बर कुछ डोल रहा है।।


आहद अनहद सब में हो तुम 

निराकार साकार रूप तुम 

विद्यमान हो कण कण में तुम

ऊर्जा का इक अनुभव हो तुम 

झांका जब अपने अंतस में,

वरद हस्त अनमोल रहा है

बसी राम की उर में मूरत ,

मन अम्बर कुछ डोल रहा है।


राम श्याम बन संग रहो तुम,

चाह यही मैँ तुम्हें निहारूँ ।

मन मंदिर के दरवाजे पर,

नित दृगजल से पाँव पखारूं।

इसी आस में बैठी रहती ,

उर सागर किल्लोल रहा है।

बसी राम की उर में मूरत ,

मन अम्बर कुछ डोल रहा है।


अनिता सुधीर आख्या


Sunday, March 24, 2024

होलिका दहन

होलिका दहन


आज के प्रह्लाद तरसे
होलिका की रीत अनुपम।
कार्य में अब व्यस्त होकर
ढूँढते सब अतीत` अनुपम।

पूर्णिमा की फागुनी को
है प्रतीक्षा बालियों की
दूर जब संतान रहती
आस बुझती थालियों की 
होलिका बैठी उदासी 
ढूँढती वो गीत अनुपम।।
आज के प्रह्लाद..

खिड़कियाँ भी झाँकती है
काष्ठ चौराहे पड़ा जो
उबटनों की मैल उजली
रस्म में रहता गड़ा जो
आज कहता भस्म खुद से
थी पुरानी भीत अनुपम।।
आज के प्रह्लाद..

भावना के वृक्ष तरसें 
अग्नि की उस लालिमा से 
रंग जीवन के व्यथित हैं
टेसु लगते कालिमा से
सो गया उल्लास थक कर
याद करके प्रीत अनुपम।।
आज के प्रह्लाद..

अनिता सुधीर आख्या
लखनऊ

नोट : होली त्योहार में बच्चे व्यस्तता के कारण घर नहीं आ पाते उस भाव को दिखाया है
होलिका दहन में उबटन लगा कर उसे अग्नि में डालने की प्रथा है

Thursday, March 21, 2024

विश्व कविता दिवस पर

*बनी प्रेयसी सी चहकी*


खुली गाँठ मन पल्लू की जब

पृष्ठों पर कविता महकी


बनी प्रेयसी शिल्प छन्द की

मसि कागद पर वह सोई 

भावों की अभिव्यक्ति में फिर

कभी पीर सह कर रोई

देख बिलखती खंडित चूल्हा

आग काव्य की फिर लहकी।।


लिखे वीर रस सीमा पर जब

ये हथियार उठाती है

युग परिवर्तन की ताकत ले

बीज सृजन बो जाती है

आहद अनहद का नाद लिये

कविता शब्दों में चहकी।।


शंख नाद कर कर्म क्षेत्र में 

स्वेद बहाती खेतों में

कभी विरह में लोट लगाती

नदी किनारे रेतों में

रही आम के बौरों पर वह

भौरों जैसी कुछ बहकी।।


झिलमिल ममता के आँचल में 

छाँव ढूँढती शीतलता

पर्वत शिखरों पर जा बैठी

भोर सुहानी सी कविता

लिए अमरता की आशा में

युग के आँगन में कुहकी।।


अनिता सुधीर आख्या

Sunday, March 3, 2024

गीतिका


गीतिका

खोखली सी नींव को ही जब बनाते आजकल।
मौन हों संवाद पूछें क्यों डराते आजकल।।

जो हृदय की वेदना जग से छुपाने में लगे,
वह स्वयं की मुश्किलों को ही बढ़ाते आजकल।।

दूर कर अपनी सरलता नित उलझते जा रहे
चित्र भावी का भयानक यह दिखाते आजकल।।

नीति नियमों को हवा में जो उड़ाते जा रहे
दोष नित सरकार के वह ही गिनाते आजकल।।

 गर्जना कर जो बिना मौसम बरसते जा रहे
रीतियों के वस्त्र को कैसे सुखाते आजकल।।

काल भी आभार कहता सत्पुरुष के हो ऋणी
जो बने आदर्श सबके पथ बताते आजकल।।


अनिता सुधीर आख्या
लखनऊ







Monday, January 22, 2024

जय श्री राम

 जय श्री राम




जय श्री राम


श्याम वर्ण के राम लला का,हुआ अलौकिक दर्शन अब

हर्षित मन भावुक हो करता,सत्य सनातन वंदन अब  ।

योगीराज नमन तुमको है,देवत्व दिया जो पाथर को

बाल सुलभ ममता में गढ़ दी ,स्मित अधरों पर नर्तन

 अब।


जय श्री राम


घर घर में प्रभु राम विराजो,अंतस सबका निर्मल कर दो।

शुद्ध आचरण हो मानव का,भक्ति भाव हर उर में भर दो।।

सीख सकें मर्यादा तुमसे,पदचिन्हों पर चले तुम्हारे

यही कामना जनमानस की,नाम तुम्हारा भव से तर दे।।


अनिता सुधीर आख्या


Friday, January 5, 2024

अयोध्या

 #SHRIRAMBHAJAN

आज रामलला मंदिर के अक्षत पा कर अभिभूत हूँ

गीत



देख अयोध्या की शोभा को,दीप वर्तिका हर्षायी।

नवल भोर की आस जगाकर,संस्कृति जग में मुस्कायी।।


सदियों ने जब करी तपस्या,दिव्य स्वप्न साकार हुआ।

बाल रूप में प्रिय को पाकर,भावों का अँकवार हुआ।।

रोम-रोम आनंदित हो फिर,बना राम का अनुयायी।।

नवल भोर...


पावन सरयू के घाटों ने,किए भव्यता के दर्शन।

लहर-लहर अब ध्यान लगाए,करे चेतना का चिंतन।।

हुलस-हुलस पग रज छूने को,तटिनी बंधन तज आयी

नवल भोर...


मर्यादित हो युग बदले जब,दूर भागता अँधियारा ।

दो अक्षर से सत्य सनातन,लाए जग में उजियारा।।

नव्य अलौकिक सृष्टि सृजन ने,भारत बगिया महकायी।।

नवल भोर...


अनिता सुधीर आख्या

लखनऊ


चित्र गूगल से साभार


रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं

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