तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Monday, May 31, 2021

वृक्ष


दोहा 
वृक्ष
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वृक्ष काटते जा रहे, पारा हुआ पचास।
वृक्षों का रोपण करें,इस आषाढ़ी मास ।।

जड़ें मृदा को बाँधतीं, लगे बाढ़ पर रोक।
 वृक्ष क्षरण जब रोकते, तभी मिटे ये शोक।।

धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।
बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इसपर  गौर ।।

भोजन का निर्माण कर ,वृक्ष करे उपकार।
प्राणवायु देते सदा ,जो जीवन आधार ।।

देव रूप में पूज्य ये ,धरती का श्रृंगार।
है गुण का भंडार ये ,औषध की भरमार ।।

संतति जैसे वृक्ष ये ,करिये प्यार दुलार ।
उत्तम पानी खाद से ,लें रक्षा का भार ।।

अनिता सुधीर

Friday, May 28, 2021

क्यूँ लिखूँ



*क्यूँ लिखूँ*

क्यूँ लिखूँ, मैं क्यूँ लिखूँ
यक्ष प्रश्न सामने खड़ा
इसका जवाब 
चेतना अवचेतना में गड़ा
मैं मूढ़ अल्पज्ञानी खोज रही जवाब 
और मस्तिष्क कुंद हुआ पड़ा
प्रश्न ओढ़े रहा नकाब 
अब तक न मिला जवाब!
प्रश्न से ही प्रश्न?
अगर न लिखूँ ........
क्या बदल जायेगा!
अनवरत वैसे ही चलेगा 
जैसे औरों के न लिखने से .....
मैं सूक्ष्म कण मानिंद
अनंत भीड़ में लुप्त
संवेदनाएं,वेग आवेग उद्वेलित करती
घुटन उदासी की धुंध 
विचार गर्भ में ही मृतप्रायः
और मैं सूक्ष्म से शून्य की यात्रा पर..
 यह जवाब  ही समाहित किये  
  क्यूँ लिखूँ  मैं
सूक्ष्म से विस्तार की 
यात्रा के लिए ...
 उन पर बढ़ते नन्हें कदम 
के लिए लिखूँ.…

अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, May 26, 2021

मंगल

 मंगल शब्द पर दोहे

अंतरिक्ष अभियान में,ऊँची भरे उड़ान।
ग्रह पर मंगल यान से ,बढ़ा देश का मान।।

ज्येष्ठ मास मंगल रहे,लखनऊ में कुछ खास ।
पंचमुखी हनुमान जी,पूरी करते आस ।।

शुभ मंगलकारी वचन,भरते उर उत्साह ।
मिले मनुज को जीत फिर,उत्तम पथ निर्वाह।।

मंगलमय जीवन रहे,मंगल ध्वनि सुर साज।
उर में मंगल भाव से,हर्षित रहे समाज।।

लेखन रुचि दो वर्ष से,आख्या अब उपनाम ।
यात्रा मंगल दायिनी,आये नहीं विराम ।।

वैदिक ज्योतिष ग्रंथ में, मंगल ग्रह बलवान।
मूँगा से ग्रह शान्ति हो, कहते विज्ञ सुजान।।

करें शांत ग्रह ज्योतिषी, शोध करे विज्ञान।
रोवर मूँगा  से चले, मंगल जल अभियान।।

अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, May 12, 2021

गरमी


*गरमी*
कुंडलिया

गरमी के इस ताप में ,पारा हुआ पचास ।
सूरज उगले आग जो,बरखा की है आस।।
बरखा की है आस,जीव सब जल को तरसें।
सूख गए अब ताल,झूम कर मेघा बरसें।।
रोपें फसल खरीफ,दिखा अब थोड़ी नरमी।
भरें खेत खलिहान,बाद इस मौसम गरमी।।

2)

गरमी सबकी अब अलग,बढ़ा रही संताप ।
लोभ क्रोध के ताप में,बढ़ा धरा पर पाप।।
बढ़ा धरा पर पाप,सुलग कर जीवन रहता।
होता अत्याचार, मनुज तन पीड़ा सहता।।
आख्या की सुन पीर,पाप जब करें अधर्मी।
करिये सभी प्रयास, उतारें इनकी गरमी ।।

अनिता सुधीर आख्या

Thursday, May 6, 2021

मति की क्षति

गीत

मति की क्षति के अर्थ अनेकों
विषय बड़ा है गूढ़

एक तराजू कैसे तौले
मति गति बुध्दि विवेक।
अलग रही क्षति की परिभाषा
मानव रूप अनेक।।
तीस मार खाँ सभी बने अब
मैं अज्ञानी मूढ़
मति की ...

इसकी क्षति में घर से निकले
दोनों राजा रंक
देश रसातल में जाता फिर
खूब लपेटे पंक
हवा करे काला बाजारी
तरसें बच्चे बूढ़
मति की ...

इसकी गति जब हो बलशाली
टीका हो तैयार
फिर क्षति में हो नीयत लोभी 
करे दवा व्यापार
अहम कराता दंगल बाजी
जो सत्ता आरूढ़
मति की ...

अनिता सुधीर