*गेरुए सी छाप तेरी*
गेरुए सी छाप तेरी
साथ चंदन सा महकता
प्रेम अंगूरी हुआ है
धड़कनों की रागिनी में
रूप सिंदूरी हुआ है
सोचता मन गाँव प्यारा
ये डगर रंगीन मेरी ।।
देह के अनुबंध झूठे
रोम में संगीत बहता
बाँसुरी की नाद बनकर
दिव्यता को पूर्ण करता
जो मिटा अस्तित्व तन का
अनवरत अब काल फेरी।।
जब अलौकिक सी कथा को
मौन की भाषा सुनाती
उर पटल नित झूमता सा
प्रीत नूतन गीत गाती
स्वप्न को बुनते रहे हम
कष्ट की फिर दूर ढेरी।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
बहुत सुंदर👏👏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण प्रेम गीत 🙏🙏🙏💐💐💐❤❤❤❤
ReplyDeleteसरोज जी हार्दिक आभार
Deleteवाहहह, अप्रतिम
ReplyDeleteअति सुंदर एवं मनमोहक सृजन 💐💐🙏🏼
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार दीप्ति जी
ReplyDeleteअद्भुत हैं तुम्हारी लेखनी से निकला एक एक शब्द 👌
ReplyDeleteधन्यवाद दोस्त
Deleteसुंदर छायाचित्र जैसी रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteवाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteसुंदर।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लाजवाब नवगीत।