तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Thursday, September 28, 2023

चुभन

चुभन

उर में जब जब पीर उठी,कलम मिटाती रही तपन।
शब्दों ने आगाज किया,भाव दिखाते जब तड़पन।।
हृदय पृष्ठ ऐसे भीगा,फिर भी मन उपवन सूखा
कोई कब यह पूछे है,क्या पृष्ठों को हुई चुभन?


अनिता सुधीर आख्या

Friday, September 15, 2023

बस यूँ ही


अतुकांत 


कहीं की ईंट,कहीं का रोड़ा

भानुमति ने कुनबा जोड़ा

सबके हाथ पाँव फूले हैं,

दोस्ती में आँखे फेरे हैं।

जो फूटी आँख नहीं सुहाते 

वो अब आँखों के तारें हैं।

कब कौन किस पर आँख दिखाये

कब कौन कहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाए

विपत्तियों का पहाड़ है

 गरीबी मे आटा गीला हो जाए।

बंदरबांट चल रही 

अंधे के हाथ बटेर लगी 

पुराने गिले शिकवे भूले हैं 

उलूक सीधे कर रहे  

उधेड़बुन में पड़े

उल्टी गंगा बहा रहे

जो एक आँख भाते नहीं 

वो एक एक ग्यारह हो रहे

कौन किसको ऊँगली पर नचायेगा

कौन एक लाठी से हाँक पायेगा

ढाई दिन की बादशाहत है 

टाएँ टाएँ फिस्स मत होना ।

दाई से पेट क्या छिपाना 

बस पुराना इतिहास मत दोहराना।


अनिता सुधीर

Thursday, September 14, 2023

वृंदावन

वृंदावन
**
वृंदावन की गलियों में जब,अज्ञानी मानव आता है।
पावन भू की रज छूते ही,परम ज्ञान सब वह पाता है।।

ब्रज मंडल की लीला न्यारी,श्याम सखा नित रास रचाएँ।
कण-कण में वन उपवन में हम,परम पुरुष के दर्शन पाएँ
रोम-रोम रोमांचित होकर,अंतस में ध्यान लगाता है।।
पावन भू की....

यमुना लहरें अठखेली कर,बंसी के नित गीत सुनातीं
वृक्ष लताएँ आलिंगन में,निधिवन की शुभ प्रीति सुनातीं।।
उलझ गया मन मोहक छवि में,मोहन से कैसा नाता है
पावन भू की....

सत्य शाश्वत समय खड़ा है,वृंदावन में डेरा डाले।
श्याम बिहारी के दर्शन से,गूढ़ भेद जीवन का पा ले।।
दिव्य अलौकिक अनुभव पाकर,जन्म सफल यह हो जाता है।
पावन भू की....

अनिता सुधीर आख्या

चित्र गूगल से साभार

Thursday, September 7, 2023

कृष्ण

कृष्ण कन्हैया

गीत

रास रचैया कृष्ण कन्हैया
छेड़ो मीठी तान।
बाँसुरिया की धुन को तरसे
जनमानस के प्रान।।

द्वेष रायता फैलाते सब
चौराहों पर आज 
मुख में मिश्री कर में छूरी
कैसा हुआ समाज
हृदय जलधि में खारापन है
नीर पिलाओ छान।
बाँसुरिया की धुन को तरसे
जनमानस के प्रान।

सात छिद्र की बजा बाँसुरी
कर दो  हिय अनुनाद 
अंतर्मन की गुहिका गाए 
फिर उसके ही बाद ।
प्रेम वेग की लहर उठा कर
करो धरा का त्राण
बाँसुरिया की धुन को तरसे
जनमानस के प्रान।

कुंज गली में कहाँ छिपे हो,
गोकुल के तुम श्याम,
बरसाने' की होली ढूँढे 
प्रेम राधिका नाम 
ग्वाल बाल माखन को तरसें 
करें गरल का पान
बाँसुरिया की धुन को तरसे
जनमानस के प्रान।

रास रचैया कृष्ण कन्हैया
छेड़ो मीठी तान 
बाँसुरिया की धुन को तरसे
जनमानस के प्रान।


अनिता सुधीर आख्या

लखनऊ

Wednesday, September 6, 2023

जीवन साँझ


गीत

दबे पाँव जब संझा आयी

प्रेम सरित अब बहने दो ।

उथल पुथल थी जीवन नैया

नैन डगर तुम रहने दो ।।


कांच नुकीले कंकड़ कितने

रक्त बहाए तन मन से,

पटी पड़ी है नयन कोटरें 

उजड़े उन रिक्त सपन से,

बोल मौन हो नयन बोलते

परिभाषा नित कहने दो ।

नैन ...


धागे उलझे हृदय पटल पर

एक छुअन सुलझाती है,

नर्तन करती चाँद चाँदनी

जब भी तू मुस्काती है,

मुक्त क्षणों की धवल पंक्तियां

जीवन को ये गहने दो ।

नैन ..


नीड़ भरा था तब मेले से 

आज अकेले दो प्राणी

पल-पल को अब मेला कर लें

रखें ताक पर कटु वाणी

अटल सत्य के अंतिम क्षण में

संग हार हम पहने दो  ।

नैन..


अनिता सुधीर आख्या


चित्र - गूगल से साभार।