तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Wednesday, December 18, 2019

द्वार द्वार जा रहे    ,बधाई गीत गा रहे ,
वाद्य यंत्र साथ लिए ,दुआ देते जा रहे  ।
कोई कहे किन्नर इन्हें ,कोई कहे वृहन्नला
कोई छक्का कह इन्हें,हँसी क्यों उड़ा रहे ।
न नर न नारी रहे ,सदा ये बेचारे  रहे,
बिना गलती दोष के,अलग प्राणी रहे।
वेदना अथाह सहें ,अपनों से दूर रहें
दुआओं के बदले ये ,तिरस्कार सह रहे ।
शारीरिक दोष है इन्हें,मन से अपंग नही
सोच ले ये समाज ,कहीं वो इनमें तो नहीं।

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