हंसमाला छंद
सगण,रगण,गुरु
११२,२१२,२
वह बातें पुरानी
ऋतु थी वो सुहानी।
ढलती यामिनी में
खिलती चाँदनी में ।
खनकी चूड़ियाँ थीं
बजती झांझरे थीं।
महकी टेसुओं सी
चहकी कोयलों सी।
फिर दोनों मिले थे
सपने क्या सजे थे ।
नभ में वो उड़े थे
धरती से जुड़े थे ।
सच वो जानते थे
घर की मानते थे ।
जकड़ी बेड़ियां थीं
पिछड़ी रीतियाँ थी।
ठिठकी रात है क्यों
ठहरी बात है क्यों ।
अब ये दूरियां हैं
कि परेशानियाँ है ।
कहता क्या जमाना
इसका है फ़साना ।
बिसरा दो पुराना
अब गाओ तराना ।।
अनिता सुधीर
सगण,रगण,गुरु
११२,२१२,२
वह बातें पुरानी
ऋतु थी वो सुहानी।
ढलती यामिनी में
खिलती चाँदनी में ।
खनकी चूड़ियाँ थीं
बजती झांझरे थीं।
महकी टेसुओं सी
चहकी कोयलों सी।
फिर दोनों मिले थे
सपने क्या सजे थे ।
नभ में वो उड़े थे
धरती से जुड़े थे ।
सच वो जानते थे
घर की मानते थे ।
जकड़ी बेड़ियां थीं
पिछड़ी रीतियाँ थी।
ठिठकी रात है क्यों
ठहरी बात है क्यों ।
अब ये दूरियां हैं
कि परेशानियाँ है ।
कहता क्या जमाना
इसका है फ़साना ।
बिसरा दो पुराना
अब गाओ तराना ।।
अनिता सुधीर
ReplyDeleteठिठकी रात है क्यों, ठहरी बात है क्यों ।
अब ये दूरियां हैं, कि परेशानियाँ है ।
वाह, यही अतिरेक व भाव मुझे भाते हैं । सुन्दर लेखन हेतु साधुवाद आदरणीया।
जी सादर अभिवादन और आभार
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