मरुथल में
एक फूल खिला
कैक्टस का ,
तपते रेगिस्तान में
दूर दूर तक रेत ही रेत ,
वहाँ खिल कर देता ये संदेश
विपरीत स्थितियों में
कैसे रह सकते शेष
फूल खिला तो सबने देखा ,
पौधे को किसने सोचा?
स्वयं को ढाल लिया
विपरीत के अनुरुप
अस्तित्व को बदला कांटो में
संग्रहित कर सके जीवन जल
खिल सके पुष्प ।
ऐसे ही नही खिलता
मानव बगिया मे कोई पुष्प,
माली को ढलना पड़ता है,
परिस्थिति के अनुरूप ।
अनिता सुधीर
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आ0
Deleteवाह.... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (20-04-2020) को 'सबके मन को भाते आम' (चर्चा अंक-3677) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
तपते रेगिस्तान में
ReplyDeleteदूर दूर तक रेत ही रेत ,
वहाँ खिल कर देता ये संदेश
विपरीत स्थितियों में
कैसे रह सकते शेष...
कैक्टस के माध्यम से दुर्लभ सीख देती हुई बहुत सुन्दर रचना.
जी आ0 हार्दिक आभार
Deleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteमरुस्थल के सूखे रेगिस्तान में खिले कैक्टस के साथ मानव-जीवन को एक सकारात्मक सन्देश देती रचना ...बेहतर ...
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