तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Friday, August 28, 2020

आँकड़े कागजों पर

 आँकड़े कागजों पर

खूब फले फूले


बुधिया की आँखों में

टिमटिम आस जली

कोल्हू का बैल बना

निचुड़ा गात खली

कर्ज़े के दैत्य दिए

खूँटी पर झूले।।

आँकड़े...


गमछे में धूल बाँध

रंग भरे  पन्ने

खेतों की मेड़ों पर

लगते हैं गन्ने

अनुदान झुनझुने से

नाच उठे लूले।।

आँकड़े...


 मतपत्र बने पूँजी

 रेवड़ी बाँट कर

फिर झोपड़ी बिलखती

क्यों रही रात भर

जय किसान ब्रह्म वाक्य

आज सभी भूले।।

आँकड़े...


अनिता सुधीर आख्या





 







Wednesday, August 26, 2020

प्रतीक्षा



बजे निगोड़ी यह साँकल कब 
आस टँगी ही रहती द्वारे 

सपनें बोती रही प्रतीक्षा 
कब फलते देखे वृक्ष सभी 
आँसू घर की चौखट धोए
आँखें पाथर सी बनीं तभी
सुधियाँ आकर करें हिलोरें
याद दिलातीं वादे सारे।।
बजे निगोड़ी..

कहे व्यथा रंगोली रोकर
शृंगार अधूरा अब होता
व्यथित हृदय कब गीत रचाता
टुकड़ों में शब्दों को बोता
अकुलाहट जब शोर मचाता
नयन देखते दिन में तारे।।
बजे निगोड़ी..

पगचापों की आहट रूठी
ढूँढ़े पाँवो की परछाई
हाथ पसीजे लिये रिक्तता
चौड़ी होती जाती खाई
पल पल बीते सदियों जैसे
कुटी मौन हो राह निहारे।।
बजे निगोड़ी..

Saturday, August 22, 2020

गणेश वंदना

 आधार #चामर छन्द  

23 मात्रा,15 वर्ण

गुरू लघु×7+गुरू


**


रिद्धि सिद्धि साथ ले,गणेश जी पधारिये।

ग्रंथ हाथ में धरे ,विधान को विचारिये।।

देव हो विराजमान ,आसनी बिछी हुई।

थाल है सजा हुआ कि भोग तो लगाइये।।


प्रार्थना कृपा निधान, कष्ट का निदान हो।

भक्ति भाव हो भरा कि ज्ञान ही प्रधान हो।।

मूल तत्व हो यही समाज में समानता।

हे दयानिधे! दया ,सुकर्म का बखान हो।।


ज्ञान दीजिये प्रभू अहं न शेष हो हिये।

त्याग प्रेम रूप रत्न कर्म में भरा  रहे।।

नाम आपका सदा विवेक से जपा करें,

आपका कृपालु हस्त शीश पे सदा रहे।।

©anita_sudhir

Thursday, August 20, 2020

प्रार्थना

दोहा छन्द

***

सब धर्मों  में प्रार्थना,भक्त ईश संवाद।

अन्तर्मन की शुद्धि से,गूँजे अंतर्नाद।।


एक रूप हो ईश से,करें प्रार्थना मौन।

ऊर्जा का संचार ये,अनुभव करता कौन?


लोभ अहम का नाश कर,करता दूर विकार।

सम्बल देती प्रार्थना,शुद्ध रखे आचार।।


उचित कर्म मानव करे,उचित करे व्यवहार।

करें प्रार्थना ईश से,सुखमय हो संसार।।


सामूहिक हो प्रार्थना,करिये यही प्रयास।

मनुज मनुज को जोड़ कर,सदा मिटाती त्रास।।


शुद्ध भाव में प्रार्थना,करें नहीं व्यापार।

श्रद्धा अरु विश्वास ही,रहा सदा आधार।।


अनिता सुधीर

लखनऊ

Tuesday, August 18, 2020

 तृषा बुझा दो मरुथल की*


रिक्त कुम्भ है जग पनघट पर

फिर आस लगी है श्यामल की


काया निस दिन गणित लगाती

जोड़ घटाने में है उलझी 

गुणा भाग से बूझ पहेली

कब हृदय पटल पर है सुलझी 

थी मरीचिका मृगतृष्णा की 

अब तृषा बुझा दो मरुथल की।।

रिक्त कुम्भ....


थकी पथिक हूँ पड़ी राह में 

बीत गयीं हैं कितनी सदियां

नहीं माँगती ताल तलैया

नहीं चाहती शीतल नदियां

एक बूँद से तृप्त हुई जो

अखिल तृप्ति संजीवन बल की।।


अस्तित्व मिटा पाथर सी हूँ

जीवन स्पन्दन निष्प्राण हुआ

मिले तुम्हारा हस्ताक्षर जब

स्पर्श तरंगों से त्राण हुआ 

शापमुक्त फिर हुई अहिल्या

ठोकर खाकर चरण कमल की।।

रिक्त कुम्भ....


अनिता सुधीर आख्या




Friday, August 14, 2020

स्वतंत्रता

 दोहा छन्द

***
सदियों से जकड़ी रही,पैरों में जंजीर।
भारत माँ के लाल तब, कैसे सहते पीर।।

वीरों के बलिदान से,आजादी का पर्व।
नमन शहीदों को करें,हमको उन पर गर्व।।

मुक्त फिरंगी से हुए,पंद्रह था दिन खास।
टूटी माँ की बेड़ियाँ,था अगस्त शुभ मास।।

बलिदानी गाथा रही,समझें इसका मर्म।
व्यर्थ न जाए ये कहीं,देश प्रेम हो धर्म।।

बँटवारे की वेदना,भरे हृदय में पीर।
घाव हरें हैं आज भी,लिए नयन में नीर।।

राज करो सब बाँट के, कुटिल रही थी नीति।
दंश झेलते ही रहे,खत्म करो यह रीति।।

लाल किला प्राचीर भी,देख रहा इतिहास।
गौरव गाथा देश की,भरे हृदय उल्लास।।

वर्ष तिहत्तर हो रहे,स्वतंत्रता अनमोल।
शान तिरंगा गा रहा,कानों में रस घोल।।

आजादी के पर्व का,गहन रहा है अर्थ।
अपनों के ही दास बन,करिये नहीं अनर्थ।।

श्रेष्ठ नागरिक धर्म से,रखें देश का मान।
सार्थकता इसमें निहित,भारत का उत्थान।।

Tuesday, August 11, 2020

वेदना प्रभु की

अंतरयामी प्रभु सर्वज्ञ अच्युत अनिरूद्ध हैं।

अपने बनाये संसार की दशा देख उनकी वेदना और पीड़ा असहनीय है ।

कर्मयोगी प्रभु मानव जाति को स्वयं *कल्कि* बनने का उपदेश दे रहे हैं।

इस को दोहा छन्द गीत के माध्यम से दिखाने का प्रयास


आहत है मन देख के  ,ये कैसा संसार।

कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।


नौनिहाल भूखे रहें ,मुझे लगाओ भोग ,

तन उनके ढकते नहीं,स्वर्ण मुझे दे लोग।

संतति मेरी कष्ट  में,उनका जीवन तार ,

कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।

आहत है मन ...


नहीं सुरक्षित बेटियां ,दुर्योधन का जोर,

भाई अब दुश्मन बने,कंस हुए चहुँ ओर ।

आया कैसा काल ये ,मातु पिता हैं भार,

कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।

आहत है मन ...


प्रेम अर्थ समझे नहीं ,कहते राधेश्याम,

होती राधा आज है,गली गली बदनाम।

रहती मन में वासना,करते अत्याचार ,

कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।

आहत है मन ...


सुनो भक्तजन ध्यान से ,समझो केशव नाम,

क्या लेकर तू जायगा  ,कर्म करो निष्काम।

स्वयं कल्कि अवतार हो,कर सबका उद्धार,

कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।

आहत है मन ...


अनिता सुधीर आख्या

Sunday, August 9, 2020

हलषष्ठी

 चौपाई

भाद्र मास की षष्ठी आयी

       हलछठ व्रत सुंदर फलदायी।।

जन्म दिवस दाऊ का मनता।

        पोखर घर के आँगन बनता ।।

शस्त्र अस्त्र हल दाऊ सोहे ।

        हलधर की मूरत मन मोहे।।

पुत्रवती महिलाएं पूजें।

        मन अँगना किलकारी गूँजे।।

पूजन पलाश झड़बेरी का।

          भोग लगा महुवा नारी का ।।

जोता बोया आज न खाए

         तिन्नी चावल दधि सँग भाए।।

दीर्घ आयु संतति की करना।

         आशीषों से झोली भरना ।।

वृक्ष पूजना पाठ पढ़ाता ।

          संस्कृति का यह मान बढ़ाता।।


अनिता सुधीर आख्या


©anita_sudhir

Tuesday, August 4, 2020

राम



राम 

भूमि पूजन विशेष


1)
राम राम बस राम मय,हृदय बसे श्रीराम।
घट घट में जो व्याप्त हैं,कौशलेय हरि नाम।।
दिव्य अलौकिक रूप को,पूजें सब नर नारि
बीज मंत्र के जाप से,पतित पावनी धाम।।
2)
रामलला मंदिर बने,भू पूजन दिन खास।
आस्था के सैलाब में,जन जन का विश्वास।।
सदियों के संघर्ष का,खत्म हुआ अब काल,
भारत नव उत्थान का,खास रहे यह मास।।
3)
चिंतन दर्शन राम का,है जीवन आधार।
आत्मसात कर राम को,मर्यादा है सार ।।
मर्यादा है सार ,भक्ति से शीश झुकाये ।
कौशलेय हरि नाम,हृदय को अति हर्षाये।
अयन कथा प्रभु राम,भरे उजियारा तन मन।
मिले मोक्ष का द्वार,करे जो प्रभु का चिंतन।
4)
रामायण

श्री रामायण ग्रंथ में,  दशरथ नंदन राम।
अयन कथा प्रभु राम की,कौशलेय हरि नाम।।
कौशलेय हरि नाम,भक्ति से शीश झुकाया।
सप्त कांड का गान,हृदय को अति हरषाया ।।
आत्मसात कर पाठ ,भजे मन श्री नारायण ।
मिले मोक्ष का द्वार,पढ़े जब श्री रामायण ।।

अनिता सुधीर














Monday, August 3, 2020

राखी

सोरठा    
***
कथा रही प्राचीन,प्रेम त्याग त्यौहार की।
काल हुआ आधीन ,इन्द्राणी तप सूत्र से,।।(१)

कर्णवती का नेह,मुगल हुमायूँ बाँधते।
बचा बहन का गेह,वचन सुरक्षा का निभा।।(२)

पावन  रेशम डोर,बाँधे बंधन नेह के ।
भीगे मन का कोर,खुशियों के त्यौहार में।।(३)

सजती राखी हाथ,तिलक सजा के शीश पर।
उन्नत तेरा माथ,बहना दे आशीष ये ।।(४)

आशाओं की डोर,कठिन पलों में थाम लो।
सुखद नवल हो भोर,भाई करना यत्न ये।।(५)

पर्व हुये व्यापार,बैठा है झूठा अहम।
भ्रात बहन का प्यार,इस जग में अनमोल है।(६)

करिये सार्थक अर्थ,रक्षा बंधन पर्व का ।
होंगें तभी समर्थ,धरती की रक्षा करें।।(७)

भैया रखना मान,सभी बहन के प्रेम का।
प्रण यह मन में ठान,नहीं कभी व्यभिचार हो।(८)

ऐसी राखी आज,सैनिक को सब बाँध दें।
रहे शीश पर ताज,हाथ न सूने हों कभी।।(९)

आया विपदा काल,शुद्ध कलावा बाँधिये।
समझें पल की चाल,अपनी रक्षा आप कर।।(१०)