तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Monday, November 30, 2020

किसान आंदोलन



*खेत को क्यों मिर्च लागे*

हो अचंभित देखता जग
खेत को क्यों मिर्च लागे

रोटियां सब सेंकते जब
वो तवा हरदम बने हैं
मोहरें शतरंज चलतीं
दाँव प्यादे पर ठने हैं
कुर्सियां मिल कर लड़ी हैं
कर कृषक को आज आगे।।
खेत को क्यों 

मंडियों की भीड़ कहती 
दिग्भ्रमित हो क्यों खड़े हो
अन्न के दाता तुम्हीं हो
भूख से तुम ही लड़े हो
टूटते आए सदा ही
देख कच्चे मौन धागे।।
खेत को क्यों 


खुरदुरी सी एड़ियाँ अब 
घाव कितने सह रही हैं
पृष्ठ चिपका जब उदर से
उग्र हो कैसे सही हैं
पाट में घुन पिस रहे हैं
वेदना भुगतें अभागे।।
खेत को क्यों 

अनिता सुधीर आख्या




























Friday, November 27, 2020

रस्में

रस्में

*देहरी गाने लगी है*


ब्याह की रस्में निभाकर
देहरी गाने लगी है ।।

मेहँदी रचती हथेली
भाग्य की गाढ़ी लकीरें
ऊँगलियाँ साजें अँगूठी
रीति के बजते मँजीरे
जब शगुन हल्दी लगाती
नीति दूर्वा ने सिखाई
प्रेम का हो रंग पक्का
जब अहम करता ढिठाई
भूमिजा का आचरण हो
बात यह भाने लगी है।।

आरती का थाल हँसता 
सालियों के हाथ में अब
सात फेरों की सुनो
जन्म सातों साथ में अब
शुभ विदाई भी सिसकती
तात बिन जीवन अधूरा
अंजुरी की खील कहती
धान्य का भंडार पूरा
माँग सिंदूरी सजी जब
मान वो पाने लगी है ।।

छाप कुमकुम कह रही है
दो चरण लक्ष्मी पड़े हैं
द्वार के झूमे कलश भी
शुभ पिटारी ले खड़े हैं 
गाँठ पल्लू की खुली जो
नेग ननदी माँगती है
है मिलन की दिव्यता जो
ध्रुव अडिग सा चाहती है
उर पटल पर सेज की वो
फिर महक छाने लगी है।।

अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, November 25, 2020

एकादशी

प्रबोधिनी एकादशी की शुभकामनाएं
#26/11/20

#दोहा ,चोपाई
**
दोहा
प्रबोधिनी एकादशी,आए कार्तिक मास।
कार्य मांगलिक हो रहे,छाए मन उल्लास।।

चौपाई
शुक्ल पक्ष एकादश जानें।
       कार्तिक शुभ फलदायक मानें ।।
चार मास की लेकर निद्रा।
           विष्णु देव की टूटी तंद्रा ।।
श्लोक मंत्र से देव जगाएं ।
          प्रभु चरणों में शीश झुकाएं।।
तुलसी विवाह अति पावन है।
           दशाक्षरी मंत्र लुभावन  है  ।।
भाव सुमन को उर में भरिये ।
           विधि विधान से पूजन करिये।।
दीप धूप कर्पूर जलाएं।
              माधव को प्रिय भोग लगाएं।।
व्रत निर्जल जब सब जन रखते।
          दीन दुखी के प्रभु दुख हरते ।।
महिमा व्रत की है अति न्यारी।
          पुण्य प्रतापी सब नर नारी।।
           
दोहा
पाप मुक्त जीवन हुआ,हुआ शुद्ध आचार।
आराधन पूजन करे,खुले मोक्ष के द्वार।।

Tuesday, November 24, 2020

धोखा


#छल  धोखा 

मानवता लाचार अब,आया कैसा काल।
रिश्तों में धोखा मिला,फैला भ्रम का जाल।।

धोखा अपनों से  मिला ,कैसे हो विश्वास।
फरेबियों से जग भरा, टूट गयी सब आस ।।

वो धोखा खाता नहीं,जाने जो अधिकार।
रहे सजग जो आज कल,करे शुद्ध व्यापार।।

किस्मत धोखा दे रही,कहें मूर्ख यह बात।
नीति नियम से कार्य कर,सुधरेंगे हालात।।

झूठ कपट जब छूटता,निखरे जीवन रूप ।
नैतिकता आधार से,पाएं रूप अनूप ।।


अनिता सुधीर आख्या

Sunday, November 15, 2020

चिंतन


दोहा गजल

****

बीत रहा इस वर्ष का,दीपों का त्योहार।
वायु प्रदूषण बढ़ रहा,जन मानस बीमार ।।

दोष पराली पर लगे ,कारण सँग कुछ और।
जड़ तक पहुँचे ही नहीं ,कैसे हो उपचार ।।

बिन मानक क्यों चल रहे ,ढाबे अरु उद्योग ।
सँख्या वाहन की बढ़ी ,इस पर करो विचार।।

कचरे के पर्वत खड़े ,सुलगे उसमें आग ।
कागज पर बनते नियम,सरकारें लाचार ।।

आतिशबाजी बंद का,बना नियम कानून।
उसकी उड़ती धज्जियां,कैसे करें सुधार।।

कोरोना के साथ अब,बढ़ा प्रदूषण खूब
श्वसन तंत्र बाधित हुये ,शुद्ध करें आचार ।

व्यथा यही प्रतिवर्ष की ,मनुज हुआ बेहाल।
सुधरे जब पर्यावरण ,तब सुखमय संसार ।।

अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, November 4, 2020

माता पिता

मातु पिता के प्रेम में,मिलती शीतल छाँव।
पीढ़ी अब ये भूलती,ढूँढ़े दूजा ठाँव।।

दंश उपेक्षा का लिए,मातु पिता मजबूर।
कष्ट उठा पाला जिसे,वही करे अब दूर।।

मातु पिता को बाँट कर,किया मान नीलाम।
समय चक्र ऐसा चला,छूटी प्रेम लगाम ।।

संतानें क्यों भूलतीं, मातु पिता का प्यार।
बोझ समझ माँ बाप को,करते दुर्व्यवहार।।

प्रथम पाठशाला रही,घर का शिष्टाचार।
पाओगे जो बो रहे,करो नेक व्यवहार।।

मातु पिता को कष्ट दे,कौन सुखी इंसान।
कर्मों का फल भोगते,जीवन नरक समान।।

पूजा  है उत्तम यही ,मातु पिता का मान।
सेवा का व्रत लीजिये ,तभी मिलें भगवान।।

मातु पिता की  झुर्रियां,जीवन का संघर्ष।
इन सिकुड़न के मोल में,संतति का उत्कर्ष।।

मंदिर में श्रृंगार कर,लगा प्रभो को भोग।
मातु पिता भूखे रहे,क्या ये उत्तम योग ।।


जीवन में चुकता करें,मातु पिता का कर्ज।
आदर्शों का अनुसरण,रहे हमारा फर्ज।।


मातु पिता का ध्यान रख,रखिये सेवा भाव।
लोक सभी तब तृप्त हों,पार जगत की नाव।।