तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Sunday, January 24, 2021

गीतिका


सत्य डिगता रहा आज इंसान का।
कौड़ियों में बिका धर्म ईमान का।।

झूठ ओढ़े लबादा चला जा रहा,
प्रश्न उठता वही मान अपमान का ।।

क्यों मचाते रहे रार हर बात पर,
भूलते लक्ष्य क्यों राष्ट्र उत्थान का।।

बाँध टूटा रहा धैर्य का इस तरह,
भूलते मान भी वो अनुष्ठान का।।

आसरा जो दिये मुश्किलों में सदा,
नाम होता गुणों के सकल गान का।।

साधना जो करे श्रेष्ठतम की सदा, 
सभ्यता में छुपा राज पहचान का ।।

अनिता सुधीर आख्या

5 comments:

  1. जी हार्दिक आभार

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  2. बहुत सुन्दर और सशक्त रचना।
    राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।

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