तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Wednesday, March 24, 2021

गीतिका

गीतिका-
आधार छंद - चौपाई 

ऋतु आयी लेकर खुशहाली।
चहुँ दिस फैली किंशुक लाली।।

उड़ते रंग हवाओं में जब 
झूम उठे फिर डाली डाली।।

तूफानों से क्या घबराना
रैना बीतेगी ये काली ।।

मनुज देह उपहार प्रभो का
बनें जगत उपवन के माली।।

परहित में जब तन लगता है 
भरी रहे फिर सबकी थाली।।

नेताओं की आयी होली 
पिचकारी भर देते गाली।।

प्रश्न प्रणाली पर वही करें
करते जो हैं नित्य दलाली।।

अनिता सुधीर आख्या

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