तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Monday, March 8, 2021

स्त्री

गीतिका

स्त्री बाजार नहीं है।
वो व्यापार नहीं है।।

क्यों उपभोग किया है
वो लाचार नहीं है।।

नर से श्रेष्ठ सदा से
ये तकरार नहीं है।।

उसने मौन सहा जो
कोई हार नहीं है ।।

है परिवार अधूरा
जग आधार नहीं है

आँगन रिक्त रहे जब
फिर संसार नहीं है।

अनिता सुधीर आख्या

4 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना अनीता जी।
    सादर।

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  2. बहुत सुन्दर।
    अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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