तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Saturday, October 16, 2021

ग़ज़ल

गमों को उठा कर चला कारवां है।
बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।

जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के
दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।

शिकायत करें दर्द क्या हाकिमों से
अदालत लगा कौन सुनता यहां है।

तमाशा दिखाकर सियासत करें जो
मसीहा बने कब दिए आसमां हैं।।

तरक्की क़लम ने लिखी मुल्क की पर... 
थमे मुफ़लिसों पर सितम कब कहाँ है l


 अनिता सुधीर 




41 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. बाह अति सुंदर

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  3. बेहतरीन ग़ज़ल👏👏

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  4. "शिकायत करें दर्द क्या हकीमों से," वाह वाह

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  5. वाह, बहुत सुंदर ग़ज़ल

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  6. बेहद खूबसूरत गज़ल 🙏🏼💐💐

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  7. बेहद सुंदर 🙏

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  8. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-10-21) को "/"रावण मरता क्यों नहीं"(चर्चा अंक 4220) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  9. बहुत सुन्दर गजल

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  10. बहुत ही शानदार खेल दी❤️❤️

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  11. बहुत शानदार दी

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  12. Wah,shandar gazal,humesha ki tarah,bahut badhai

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  13. बहुत ही सुन्दर 🙏

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  14. बहुत ही सुन्दर��

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  15. सुंदर प्रस्तुति

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  16. कम शेरों वाली छोटी-सी मगर क़ाबिल-ए-दाद ग़ज़ल है यह। जहाँ में मुसाफ़िर रहे चार दिन के, दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है। बहुत ख़ूब! यह ग़ज़ल तो किसी महफ़िल में सुनाने के लिए याद करनी होगी।

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