तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Monday, October 18, 2021

लिव इन रिलेशनशिप

 देहरी गाने लगी   (मेरे एकल संग्रह से)


लिव इन रिलेशनशिप


डगमगाती सभ्यता का

अब बनेगा कौन प्रहरी


सात फेरे बोझ लगते

नीतियों के वस्त्र उतरें

जो नयी पीढ़ी करे अब

रीतियाँ सम्बन्ध कुतरें

इस क्षणिक अनुबंध को अब

देखती नित ही कचहरी।।


जब सृजन आधार झूठा 

तब नशे ने दोष ढूँढ़ा

सत्य बदले केंचुली जो

चित्त ने तब रोष ढूँढ़ा

फल घिनौने कृत्य का है

हो रही संतान बहरी।।


पत्थरों ने दूब कुचली

सभ्यता अब रो रही है

माँगती उत्तर सभी से

चेतना क्या सो रही है।।

आँधियों के प्रश्न पर फिर 

ये धरा क्यों मौन ठहरी।।

43 comments:

  1. निःशब्द करती रचना मैम, सटीक👏👏🙏🙏पत्थरों ने दूब कुचली सभ्यता अब रो रही है!!🙏नमन

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  2. समाज में फैल रही इस कुप्रथा का सही वर्णन। उत्तम अभिव्यक्ति

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  3. सात फेरे बोझ लगते.. बिल्कुल सही कहा.. Today's generation has commitment phobia, blame it on the work stress or the convenience of finding someone for a night. Sad situation.

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  4. हार्दिक आभार आ0

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  5. आधुनिकता की दौड़ में बहुत कुछ छूटा जा रहा है,मैं रहकर हम भी स्वीकृति दे रहे।अपने संस्कार देना ही इसका समाधान है,बहुत सटीक लिखा ।

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    1. धन्यवाद उषा
      रचना का मर्म समझने के लिए

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  6. सामयिक परिदृश्य पर सुंदर नवगीत दीदी नमन ! 🙏

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  7. वाह क्या खूब
    यथार्थ है आज के समय का

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  8. अत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण सृजन 🙏🏼💐

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  9. सटीक ।बहुत सही।।

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  10. सुंदर रचना।👍👍

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  11. सुन्दर रचना 👍👍

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  12. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-10-21) को "/"तुम पंखुरिया फैलाओ तो(चर्चा अंक 4222) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  13. भावपूर्ण रचना

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  14. समाज की ज्वलंत समस्या पर सटीक भाव

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  15. सात फेरे बोझ लगते

    नीतियों के वस्त्र उतरें

    जो नयी पीढ़ी करे अब

    रीतियाँ सम्बन्ध कुतरें

    इस क्षणिक अनुबंध को अब

    देखती नित ही कचहरी।।..सटीक अभिव्यक्ति। आज का परिदृष्य दिखाती चिंतनपूर्ण रचना ।

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  16. सुन्दर विचार 🙏

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  17. सुन्दर विचार ��

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  18. सात फेरे बोझ लगते
    नीतियों के वस्त्र उतरें
    जो नयी पीढ़ी करे अब
    रीतियाँ सम्बन्ध कुतरें
    इस क्षणिक अनुबंध को अब
    देखती नित ही कचहरी।।
    सच को बयां करती बहुत ही उम्दा रचना!

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  19. बहुत ही बढ़ियाँ दी👌👌👌

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  20. चेतना अब सो रही है, इसी एक वाक्य ने सब कह दिया है, चेतना को सुलाने के कितने उपाय चल रहे हैं आज

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  21. सटीक बात कही आपने....आज का सच है ये

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  22. फल घिनौने कृत्य का है
    हो रही संतान बहरी।।
    आज की युवा पीढी के लिए सशक्त संदेश!--ब्रजेंद्रनाथ

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  23. बेहद खूबसूरत मैम

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