तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Wednesday, October 27, 2021

नारी

बोले मन की शून्यता


बोले मन की शून्यता

क्यों डोले निर्वात


कठपुतली सी नाचती

थामे दूजा डोर 

सूत्रधार बदला किये 

पकड़ काठ की छोर

मर्यादा घूँघट लिए

सहे कुटिल आघात।।


चली ध्रुवों के मध्य ही 

भूली अपनी चाह 

पायल की थी बेड़ियां

चाही सीधी राह

ढूँढ़ रही अस्तित्व को 

बहता भाव प्रपात।।


अम्बर के आँचल तले

नहीं मिली है छाँव

कुचली दुबकी है खड़ी

नित्य माँगती ठाँव

आज थमा दो डोर को

पीत पड़े अब गात।।


अनिता सुधीर आख्या


28 comments:

  1. बहुत सुंदर 👏👏👏🌹🌹

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    1. हार्दिक आभार सरोज जी

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  2. बहुत-बहुत सुंदर रचना 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

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  3. अत्यंत मर्मस्पर्शी एवं संवेदनशील सृजन 💐💐🙏🏼

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  4. बिल्कुल सही।

    स्त्री की उम्र बीत गई पर मिली ना श्रेय की परवाज़
    मन मार मार कर एक दिन भर गई, दिया फ़र्ज़ का नाम।

    रेखा खन्ना

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  5. बिल्कुल सही।

    स्त्री की उम्र बीत गई पर मिली ना श्रेय की परवाज़
    मन मार मार कर एक दिन मर गई, दिया फ़र्ज़ का नाम।

    रेखा खन्ना

    Please ignore previous comment ...मर गई की जगह भर गई type हो गया है।

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    1. धन्यवाद रेखा जी
      आपका आभार जो रचना के मर्म तक पहुंची

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 28 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. हार्दिक आभार आ0
      मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद

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  7. सुन्दर , पहले ऐसा था परन्तु अब स्थितियां बदली है।

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  8. उत्कृष्ट भाव, अभिनव व्यंजनाएं।
    सुंदर सखी।

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