तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Thursday, December 16, 2021

दहेज (कानून का अनुचित लाभ)


 चित्र गूगल से


काल चले जब वक्र चाल में

बिना बिके दूल्हा डरता


सात वर्ष ने दाँव चला अब

घर की हँड़िया कहाँ बिके

धन की थैली प्रश्न पूछती

छल प्रपंच में कौन टिके

अदालतों से वधू पक्ष फिर

खेत दूसरों के चरता।।


चिंता लाड़ जताती सबसे

नाच रही घर के अँगना

सास ननद अब सहमी सोचें

बचा रहे चूड़ी कँगना

पुरुष घरों के छुपे खड़े हैं

व्यंग्य उदर को फिर भरता।।


कोर्ट-कचहरी के नियमों को

घूँघट से दहेज  पढ़ता

अपने दोष छिपाकर सारे

वर की पगड़ी पर मढ़ता

तारीखों में सबको फाँसे

तहस-नहस जीवन करता।।


अनिता सुधीर





















7 comments:

  1. कड़ुआ सच। उत्कृष्ट रचना

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  2. कटु यथार्थ दर्शाता उत्कृष्ट एवं संवेदनशील सृजन 💐💐💐🙏🏼

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  3. यथार्थ लिखा है मैम🙏नमन

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  4. सच तीखा होता है ... हर पहलू जानना जरूरी है ...

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