तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Tuesday, December 28, 2021

अधूरे सपने


 स्वप्न अधूरे कह रहे

चलो गगन की ठाँव।


काँटे साथी राह के

 मंजिल खड़ी सुदूर

बोल उठे हैं घाव भी

थक कर होते चूर

बनी पैंजनी बेड़ियाँ

घायल करती पाँव।।


मन पक्षी बन उड़ रहा

मार कुलाँचे जोर

फिर सूरज की रश्मियाँ

पकड़ाती हैं छोर

देख हुए तब बावरे

शीघ्र मिले वो गाँव।।


ख्याली पुलाव कब पके

चाहे भट्टी आँच

ताप सहे परिश्रम का

फिर निखरे है काँच

नैन खोल के सो रहे

मुस्काती तब छाँव।।


अनिता सुधीर

चित्र गूगल से

18 comments:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण नवगीत 👏👏👏💐💐

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  2. सपने देखें और उनको पूरा करने के लिए श्रम करें ,तब बात बनती है ।।बेहतरीन

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  3. बोल उठे हैं घाव भी👏👏👏 उत्कृष्ट मैम🙏

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  4. Replies
    1. हार्दिक आभार दीप्ति जी

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(३०-१२ -२०२१) को
    'मंज़िल दर मंज़िल'( चर्चा अंक-४२९४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  6. वाह बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  7. अभिनव व्यंजना के साथ सुंदर नवगीत सखी।

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  8. बहुत ही सुन्दर सारगर्भित...
    लाजवाब नवगीत
    वाह!!!

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  9. नैन खोल के सो रहे..... बहुत खूब

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