तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Wednesday, January 5, 2022

गीतिका

आँकड़े देख जो आज डरता नहीं ।
चोट खाये बिना क्यों सँभलता नहीं ।।

जिंदगी चार दिन की कहानी बनी
आपदा काल अब भी खिसकता नहीं।।

भूल कर्त्तव्य अब कर रहे गलतियां,
देश का हाल उनको अखरता नहीं।।

चार जन से कहाँ दूरियाँ सब रखें,
मुख कवच भीड़ में आज लगता नहीं।।

वो गिनाने लगे नीति की ख़ामियां,
दूध का दाँत भी जब निकलता नहीं।।

दुश्मनों की कुटिल चाल रहती सदा
भूल क्यों वो रहे स्वार्थ टिकता नहीं।।

अनिता सुधीर आख्या

9 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०६-०१ -२०२२ ) को
    'लेखनी नि:सृत मुकुल सवेरे'(चर्चा अंक-४३०१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. वाह! उम्दा सखी यथार्थ पर प्रहार करती सुंदर गीतिका,हर बंध अभिनव सुंदर।

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  3. बेहतरीन रचना

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  4. हार्दिक आभार आ0

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