तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Monday, March 28, 2022

गीतिका

 शूल को पथ से हटाने का मजा कुछ और है।

वीथिका को नित सजाने का मजा कुछ और है।।


व्यंजना या लक्षणा में भाव हृद के व्यक्त हों

छंद को फिर गुनगुनाने का मजा कुछ और है।।


क्लांत बैठा हो पथिक जब जिंदगी से हार कर

पुष्प उस पथ में बिछाने का मजा कुछ और है।।


पंख सपनों को लगाकर दूर बाधा को करें

मुश्किलों के पार जाने का मजा कुछ और है।।


चाल चलकर काल निष्ठुर ओढ़ चादर सो रहा

लालिमा में चहचहाने का मजा कुछ और है।।


पीर की सामर्थ्य क्यों अवसाद को नित जोड़ती

वेदना में मुस्कुराने का मजा कुछ और है।।


कौन हूँ मैं क्या प्रयोजन द्वंद्व अंतस ने लड़ा 

लक्ष्य को फिर से जगाने का मजा कुछ और है।।



अनिता सुधीर 


Saturday, March 26, 2022

सपने


कुंडलिया


1)

सपने जग कर देखिए, बीते काली रात।

खुले नैन से ही सधे, नूतन नवल प्रभात।।

नूतन नवल प्रभात, लक्ष्य दुर्गम पथ जानें ।

करके बाधा पार, मिले मंजिल तय मानें ।

सपनों का संसार, सजाएँ नित सब अपने।

कठिन लक्ष्य को भेद, और फिर देखें सपने।।


2)

अपने जीवन को गढ़ें, शिल्पकार बन आप।

छेनी की जब धार हो, अमिट रहेगी छाप।।

अमिट रहेगी छाप, सदा रखिये मर्यादा ।

सच्चाई का मार्ग, नहीं हो झूठ लबादा।।

सतत हथौड़ा सत्य का,पूर्ण हो सारे सपने ।

नैतिकता आधार,गढ़ें सब सपने अपने।।


अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, March 23, 2022

शहीदी दिवस

शत शत नमन
 

अब आत्म बोध का हो विचार।

सुन मातु भारती की पुकार।।

बलिदान कृत्य से अमर आज

हम चुका सकें उनका उधार।।



Tuesday, March 22, 2022

जल प्रबंधन

विश्व जल दिवस 


प्यासी मौतें डेरा डाले
पीड़ा नीर प्रबंधन की

सूरज छत पर चढ़ कर नाचे
जनजीवन कुढ़ कुढ़ मरता
ताप चढ़ा कर तरुवर सोचे
किस की करनी को भरता
ताल नदी का वक्ष सूखता
आशा पय संवर्धन की।।

कानाफूसी करती सड़कें
चौराहे का नल सूखा
चूल्हा देखे खाली बर्तन
कच्चा चावल है भूखा
माँग रही है विधिवत रोटी
भूख बिलखती निर्धन की।।

बूँद टपकती नित ही तरसे
कैसे जीवन भर जाऊँ
नारे भाषण बाजी से अब
कैसे मन को बहलाऊँ
बाढ़ खड़ी हो दुखियारी बन
जन सोचे अवरोधन की।।

अनिता सुधीर आख्या

Sunday, March 20, 2022

पीर विरह की

 पीर विरह की



पीर जलाती रही विरह की

बनती रीत।

मिले प्रेम में घाव सदा क्यों

बोलो मीत।।


विरह अग्नि में मीरा करती 

विष का पान

तप्त धरा पर घूम करें वो

कान्हा गान

कुंज गली में  राधा ढूँढे 

मुरली तान 

कण कण से संगीत पियें वो

रस को छान

व्यथित हृदय से कृष्ण खोजते

फिर वो प्रीत 

पीर जलाती ..


तड़प तड़प कर रहते होंगे

राँझा हीर

अलख निरंजन जाप करे वो ,

टिल्ला वीर

बेग!माहिया बन के तड़पे ,

रक्खे धीर,

विरह अग्नि सोहनी की बुझती

नदिया तीर।

ब्याह चिनाब में फिर रचाये

मौनी मीत 

पीर जलाये..


जन्मों के वादे कर हमसे

पकड़ा हाथ

अब विरह वेदना को सहते 

छोड़ा साथ

बिना गुलाल अब सूखा फाग

सूना माथ

लगे भूत का डेरा घर अब

झेलें क्वाथ ।

पत्तों की खड़खड़ भी करती

अब भयभीत 

पीर जलाए..



अनिता सुधीर 

Wednesday, March 16, 2022

होलिका दहन



होलिका दहन


आज का प्रह्लाद भूला

वो दहन की रीत अनुपम।।


पूर्णिमा की फागुनी को

है प्रतीक्षा बालियों की

जब फसल रूठी खड़ी है

आस कैसे थालियों की 

होलिका बैठी उदासी 

ढूँढती वो गीत अनुपम।।


खिड़कियाँ भी झाँकती है

काठ चौराहे पड़ा जो

उबटनों की मैल उजली

रस्म में रहता गड़ा जो

आज कहता भस्म खुद से

थी पुरानी भीत अनुपम।।


बांबियाँ दीमक कुतरती

टेसुओं की कालिमा से

भावना के वृक्ष सूखे

अग्नि की उस लालिमा से

सो गया उल्लास थक कर

याद करके प्रीत अनुपम।।


अनिता सुधीर आख्या



Sunday, March 13, 2022

लेखनी अब ऊँघती-सी





छंद की ग्रीवा हठी-सी

माँगती अक्षर जड़ाऊ।

हाट कहता यह व्यथा फिर

काव्य क्यों रहता बिकाऊ।।


कल्पना की आस भागी

शब्द को कसकर जकड़ लें

बुद्धि ने पहरा लगाया

बाँध कर गति को पकड़ लें

आर्द्रता मसि पर पसरती

भाव कब रहते टिकाऊ।।


जब कलम अनुभूतियों के

पीत सरसों खेत ढूँढ़े

पृष्ठ  कोरे  ले उदासी

कथ्य रस की रेत ढूँढ़े

व्यंजना या लक्षणा के

सूखते हैं कूप प्याऊ।।



वर्ण पर पाला पड़ा जो

वृष्टि से कैसे निपटता

शीत की फिर ओढ़ चादर

पौष शब्दों से लिपटता

लेखनी अब ऊँघती-सी

मौन की यात्रा थकाऊ।।


अनिता सुधीर 

Wednesday, March 9, 2022

दर्पण


मुक्तक

1)

दर्पण तुम लोगों को आइना दिखाते हो।

बड़ा अभिमान तुमको कि तुम सच बताते हो।

बिना उजाले के क्या अस्तित्व रहा तेरा ,

दायें को बायें कर तुम क्यों इतराते हो ।।

2)

ये दर्पण पर सीलापन था।

या छाया का पीलापन था ।।

दर्पण को पोछा बार -बार ,

क्या आँखो का गीलापन था ।

3)

हर शख्स ने चेहरे पर चेहरा लगा रखा है ।

अधरों पर हंसी, सीने में दर्द सजा रखा है ।

सुंदर मुखौटों का झूठ बताता है आईना ,

और मायावी दुनिया का सच छिपा रखा है।


©anita_sudhir



Monday, March 7, 2022

स्त्री

 

स्त्री बाजार नहीं है।

वो व्यापार नहीं है।।


क्यों उपभोग किया है
वो लाचार नहीं है।।

नर से श्रेष्ठ सदा से
ये तकरार नहीं है।।

उसने मौन सहा जो
कोई हार नहीं है ।।

आँगन रिक्त रहे जब
फिर संसार नहीं है।

अनिता सुधीर आख्या



Friday, March 4, 2022

दीपशिखा


दीपशिखा


दीपशिखा बनकर सदा जली ,

मेरे पथ पर रहा अंधेरा,

लपट बना कर चिंगारी की ,

लूट रहा सुख चैन लुटेरा ।


कितने धागे टूटा करते

सूखे अधरों को सिलने में

पहर आठ अब तुरपन करते,

क्षण लगते कुआं भरने में

रिसते घावों की पपड़ी से

पल पल बखिया वही उधेरा 

लपट बना कर चिंगारी की ,

लूट रहा सुख चैन लुटेरा ।


पुष्प बिछाये और राह पर

शूल चुभा वो किया बखेरा ।

दुग्ध पिला कर पाला जिसको

वो बाहों का बना सपेरा ।

पीतल उसकी औकात नहीं

गढ़ना चाहे स्वर्ण  ठठेरा 

लपट बना कर चिंगारी की ,

लूट रहा सुख चैन लुटेरा ।


बन कर रही मोम का पुतला

धीरे धीरे सब पिघल गया 

अग्निशिखा अब बनना चाहूँ

कोई मुझको क्यों कुचल गया 

अब अंतस की लौ सुलगा कर,

लाना होगा नया सवेरा ।

लपट बना कर चिंगारी की 

लूट रहा था चैन लुटेरा ।


अनिता सुधीर



Thursday, March 3, 2022

प्रीत हिंडोला

 *प्रीत हिंडोला*


उर जलधि में कर हिलोरें

प्रेम फलता-फूलता सा


रश्मि रथ पर पग सँभारे

भोर नटखट-सी उतरती

कुनमुनी सी गुनगुनाहट

साज बन कर अब चहकती

प्रीत हिंडोले लहर में

हिय कुसुम कुछ झूलता सा।।


तोड़ नीरवता विपिन भी

ले मलय सौरभ विचरता

लालिमा से अर्घ्य ले कर

फिर हृदय उपवन निखरता

हो तरंगित नाचता मन 

कालिमा को भूलता सा।।


सप्त रंगों को सजोये

श्वेत अम्बर मुग्ध है अब

आगमन नव बौर का हो

नींद व्याकुल स्निग्ध है अब

उर प्रतीक्षा में धड़कता

जो रहा था सूखता सा।।



अनिता सुधीर आख्या