तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Monday, March 7, 2022

स्त्री

 

स्त्री बाजार नहीं है।

वो व्यापार नहीं है।।


क्यों उपभोग किया है
वो लाचार नहीं है।।

नर से श्रेष्ठ सदा से
ये तकरार नहीं है।।

उसने मौन सहा जो
कोई हार नहीं है ।।

आँगन रिक्त रहे जब
फिर संसार नहीं है।

अनिता सुधीर आख्या



5 comments:

  1. उसने मौन सहा जो, कोई हार नहीं है🙏नमन

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  2. अत्यंत उत्कृष्ट एवं संवेदनशील कविता 💐💐💐🙏🏼

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  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-03-2022) को चर्चा मंच       "नारी  का  सम्मान"   (चर्चा अंक-4364)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  4. सुंदर संवेदनशील कविता...

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