विपदा
नवगीत
विपदा जब द्वारे
नहीं बिखरना
जीवन ने खेले
खेल निराले
जब जीत हार में
पग में छाले
फिर पल ने बोला
सदा निखरना ।।
शतरंज बिछी है
घोड़ा ढैया
फिर पार लगाता
प्यादा नैया
तब कहें गोटियाँ
नहीं सिहरना।।
जीवन में दुख की
धूप सताती
सुख छत्र लिए फिर
छाया आती
विश्वास कहे अब
नहीं भटकना।।
अनिता सुधीर
बहुत सुंदर ! उत्कृष्ट ! कंठस्थ करने योग्य नवगीत जिसे आजीवन विस्मरण न किया जाये ! इतने अल्प शब्दों में पिरोकर जीवन-दर्शन का काव्यमय प्रस्तुतीकरण विरले ही दृष्टिगोचर होता है।
ReplyDeleteआपके प्रेरणात्मक प्रतिक्रिया लेखनी को संबल प्रदान करती है आ0
Deleteसादर आभार