दहेज कानून -अनुचित लाभ
काल चले जब वक्र चाल में
बिना बिके दूल्हा डरता
सात वर्ष ने दाँव चला अब
घर की हँड़िया कहाँ बिके
धन की थैली प्रश्न पूछती
छल प्रपंच में कौन टिके
अदालतों से वधू पक्ष फिर
खेत दूसरों के चरता।।
चिंता लाड़ जताती सबसे
नाच रही घर के अँगना
सास ननद अब सहमी सोचें
बचा रहे चूड़ी कँगना
पुरुष घरों के छुपे खड़े हैं
उदर व्यंग्य से नित भरता।।
कोर्ट-कचहरी के नियमों को
घूँघट से दहेज पढ़ता
अपने दोष छिपाकर सारे
वर की पगड़ी पर मढ़ता
तारीखों में सबको फाँसे
तहस-नहस जीवन करता।।
अनिता सुधीर आख्या
सटीक
ReplyDeleteधन्यवाद
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