आल्हा छन्द आधारित गीतिका
विषय निरर्थक बोल रहे जो,उनको मन से सुनता कौन।
सदा बोलना सोच समझ कर,ऐसी वाणी चुनता कौन।।
आलोचक बन राह दिखाए,या बोले जो मीठे बोल
संबंधों में सगा कौन है,समझ सत्य की गुनता कौन।।
नियमों की नित धज्जी उड़ती,चौराहों पर हुक्का बार।
युवा बहकते मयखानों में,इन पर अब सिर धुनता कौन।।
क्षणिक खुशी पाने को जब भी,पथ अपनाते हैं आसान
दूर खड़ी मंजिल फिर कहती,स्वप्न हमारे बुनता कौन।।
सिद्ध करें सार्थकता अपनी,सह कर नित जीवन का ताप
भड़भूजे की भाड़ सिखाती,बिना अग्नि के भुनता कौन।।
अनिता सुधीर आख्या
लखनऊ
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