तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Wednesday, September 25, 2024

जितिया व्रत

जीवित्पुत्रिका  व्रत की हार्दिक शुभकामनाएं

 लुप्त हुए त्योहार कुछ,बने धरोहर आज।
परम्परा के मूल में ,उन्नत रहे समाज।।

 है ज्युतिया उपवास में,संतति का उत्कर्ष।
कठिन तपस्या मातु की,मिले पुत्र को हर्ष।।

हिंदू धर्म में व्रत व त्योहारों को मनाने का एक विशेष महत्व और उद्देश्य होता  है ।कुछ व्रत और त्योहार सामाजिक कल्याण से जुड़े होते हैं तो कुछ व्यक्तिगत व पारिवारिक हितों से ।आश्विन मास के कृष्ण  पक्ष में जहाँ पितर शांति  के लिए श्राद्ध पक्ष मनाया जाता है तो  शुक्ल पक्ष के  आरंभ होते ही नवरात्रि  को उत्सव शुरू होता  है जिसका समापन  दशमी को दुर्गा विसर्जन और दशहरे के साथ होता  है ।इस प्रकार आश्विन माह की प्रत्येक तिथि बहुत महत्वपूर्ण हो है और जब बात संतान की सुरक्षा, सेहत और दीर्घायु की हो तब इस मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है,जब जीवित्पुत्रिका या ज्युतिया व्रत मनाया जाता है।ये ज्युतिया व्रत उत्तर पूर्वी राज्यों में अधिक लोकप्रिय है।ये कठिनतम व्रत में से एक है जो संतान के कल्याण के लिए रखा जाता है ।वंश वृद्धि के लिए और संतान के सुख समृद्धि के लिए पुत्रवती महिलाएं ये व्रत निर्जल रखतीं हैं।इसका  कथानक महाभारत काल से जुड़ा हुआ है।महाभारत के युद्ध में पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा क्रोधित हो बदले की भावना से पांडवों के शिविर में घुस गया ,और वहाँ पांच लोगों को सोते देखकर मार डाला ,,वो द्रौपदी की संतानें थीं।फिर अर्जुन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली,तब अश्वत्थामा ने मौका पाते ही अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार दिया ।तब भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फलउत्तरा की अजन्मी संतान को देकर गर्भ में पल रहे बच्चे को पुनः जीवित कर दिया ।बड़ा होकर यह बच्चा राजा परीक्षित  बना।श्री कृष्ण के कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया,तभी से संतान की लंबी उम्र और कल्याण के लिये ये व्रत रखा जाता है।एक दूसरी कथा के अनुसारगंधर्वों के परोपकारी राजकुमार जीमूतवाहन ने एक नागवंशी स्त्री के बेटे को पक्षी राज गरुड़ की बलि से बचाने के लिए स्वयं उसके स्थान पर बलि के लिए तैयार हो गए थे।पक्षीराज जीमूतवाहन की दयालुता व साहस से प्रसन्न हुए व उसे जीवन दान देते हुए भविष्य में भी बलि न लेने का वचन दिया।मान्यता है कि यह सारा वाकया आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था इसी कारण तभी से इस दिन को जिउतिया अथवा जितिया व्रत के रूप में मनाया जाता है ताकि संतानें सुरक्षित रह सकें।ज्युतिया व्रत  तीन दिनों का होता है।जितिया व्रत के पहले दिन  अर्थात सप्तमी  से आरंभ हो जाता है।महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले जागकर स्‍नान करके पूजा करती हैं और फिर एक बार भोजन ग्रहण करती हैं और उसके बाद पूरा दिन निर्जला रहती हैं। सूर्यास्त के पश्चात इस दिन कुछ नहीं खाया जाता।दूसरे दिन अष्टमी को सुबह स्‍नान के बाद महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं और फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं। । अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है। जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, अक्षत, पुष्प, फल आदि अर्पित करके फिर पूजा की जाती है। व्रत के तीसरे दिन अर्थात नवमी को पारण करती हैं। सूर्य को अर्घ्‍य देने के बाद ही महिलाएं अन्‍न ग्रहण कर सकती हैं।पितृ पक्ष की मातृ नवमी होने के काऱण उनको भी अर्घ्य दे कर विदा करते हैं।भीगे चने निगल कर पारण होता है।एक पुत्र के लिए पाँच चने निगले जाते हैं।परिवार में पुत्र के जन्म के साथ अपनी सामर्थ्य अनुसार चाँदी या स्वर्ण का ज्युतिया बनाया जाता है ,जो लाल धागे में पिरो कर रखते हैं,प्रतिवर्ष ज्युतिया के दिन ये धागा बदल कर इनकी पूजा कर माताएं धारण करती है। पेड़ा, दुब की माला,  खड़ा चावल,  गांठ का धागा,  लौंग, इलायची, पान,  खड़ी सुपारी, श्रृंगार का सामान मां को अर्पित किया जाता है।तामसिक भोजन ग्रहण नही किया जाता ।व्रती महिलाएं शुद्ध और पवित्र भाव से ये व्रत अपनी संतान के कल्याण के लिए करती हैं ।ये कठिन व्रत है। आज कल की व्यस्तता और आधुनिकता में अब कम लोग ही ये व्रत रखते हैं।और बदलते समय के अनुसार अपनी सुविधा से कुछ बदलाव भी किये हैं ।

अनिता सुधीर आख्या

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर एवं सम्पूर्ण जानकारी जितिया व्रत की ।

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    1. सादर आभार सुधा जी

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  2. सुंदर रचना, महत्वपूर्ण जानकारी

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