काव्य कूची
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तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क
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Wednesday, October 9, 2024
माँ
मुक्तक
माँ जन्मी अपने तन जब,वह भाव अघाती है।
सृजन पीर माधुर्य लिए,नित प्रीति लगाती है।।
करे गर्भ जब अठखेली,धड़कन सरगम बनती,
कोख सींच आशाओं से,मन द्वार सजाती है।।
अनिता सुधीर आख्या
2 comments:
सुशील कुमार जोशी
October 10, 2024 at 8:42 AM
सुन्दर
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Anonymous
October 10, 2024 at 7:45 PM
हार्दिक आभार
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सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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