तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Thursday, December 5, 2024

पीर का आतिथ्य





पीर के आतिथ्य में अब
भाव सिसके भीत के

दीमकें मसि पी रहीं जब
खोखले से भाव हैं
खिलखिलातीं व्यंजनाएँ
द्वंद्व के टकराव हैं
भाष्य भी फिर काँपता
वस्त्र पहने शीत के।।

थक चुकी मसि लेखनी की
ढूँढ़ती औचित्य को
पूछती वह आज सबसे
क्यों लिखूँ साहित्य को
रूठ बैठी लेखनी फिर 
भाव खोकर गीत के।।

दाव सहती भित्तियों में
छंद अब कैसे खड़े
शब्द जो मृदुहास करते
कुलबुला कर रो पड़े
लेखनी की नींद उड़ती
आस में नवनीत के।।


अनिता सुधीर आख्या

5 comments:

  1. पीर के आतिथ्य में अब
    भाव सिसके भीत के

    जीवन संदर्भ पर भावपूर्ण रचना।

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  2. नवनीत की आस ही पुन: सृजन की प्रेरणा बनती आयी है, मार्मिक रचना

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  3. सुंदर सृजन अनिता जी

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  4. Sudhir Kumar SrivastavaDecember 7, 2024 at 11:40 PM

    सुंदर सृजन । बधाई

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