तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Saturday, October 19, 2019

**बचपन**

दादी बाबा संग नहीं
भाई बहन का चलन नहीं
नाना नानी दूर हैं
और बच्चे...
एकाकी बचपन को मजबूर हैं ।
भौतिक सुविधाओं की होड़ लगी
आगे बढ़ने  की दौड़ है
अधिकार क्षेत्र बदल रहे
कोई  कम क्यों रहे
मम्मी पापा कमाते हैं
क्रेच छोड़ने जाते हैं
शाम को थक कर आते हैं
संग समस्या लाते हैं
बच्चों  खातिर समय नहीं
मोबाइल , गेम थमाते है
बच्चों के लिये कमाते हैं
और बच्चे ...
बचपन खोते जाते हैं ।
आबोहवा अब शुद्ध नहीं
सड़कों पर भीड़ बड़ी
मैदान  खेल के लुप्त हुए
बस्ते का बोझ बढ़ता गया
कैद हो गये चारदीवारी में
न दोस्तों का संग  मिला
बच्चों का ....
बचपन खोता जाता है
बच्चा समय से पहले  ही
बड़ा होता जाता है।
याद करें
अपने बचपन के दिन
दादी के  वो लाड़ के दिन
भाई बहनों संग मस्ती के दिन
दोस्तों संग वो खेल खिलौने के दिन
क्या ऐसा बचपन अब बच्चे पाते हैं
बच्चे ....
अपना बचपन खोते जाते हैं
आओ हम बच्चों का बचपन लौटाएं
स्वयं उनके संग बच्चे बन  जायें
वो बेफिक्री के दिन लौटा दें
बच्चों का बचपन लौटा दें।

अनिता सुधीर

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