तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Sunday, October 6, 2019





कर्ण नायक या ...

महाभारत युद्ध के पहले  कुंती पांडवों की  रक्षा का वचन लेने जब कर्ण के पास जातीं हैं तो वह कर्ण  की सच्चाई उसे  बता देती हैं । ये जानने के पश्चात कर्ण की  स्थिति को ,कर्ण द्वारा कुंती से पूछे जाने वाले प्रश्नों के माध्यम से व्यक्त किया है...
***
सेवा से  तुम्हारी प्रसन्न हो
ऋषि ने तुम्हें वरदान  दिया
करो जिस देव की आराधना
उसकी संतान का उपहार दिया।
अज्ञानता थी तुम्हारी
तुमने परीक्षण कर डाला
सूर्य पुत्र मैं, गोद में तेरी,
तुमने गंगा में बहा डाला ।
इतनी विवश हो गयी तुम
क्षण भर भी सोचा नहीं,
अपने मान का ध्यान रहा ,
पर मेरा नाम मिटा डाला ।
कवच कुंडल पहना कर
रक्षा का कर्तव्य निभाया
सारथी दंपति ने पाला पोस
मात पिता का फर्ज निभाया ।
सूर्य पुत्र बन जन्मा मैं
सूत पुत्र पहचान बनी
ये गलती रही तुम्हारी , मैंने
जीवन भर विषपान किया।
कौन्तेय से राधेय बना मैं
क्या तुम्हें न ये बैचैन किया!
धमनियों में रक्त क्षत्रिय का
तो भाता कैसे रथ चलाना।
आचार्य द्रोण का तिरस्कार सहा
तो धनुष सीखना था ठाना।
पग पग पर अपमान सहा
क्या तुमको इसका भान रहा !
दीक्षा तो मुझे लेनी थी
झूठ पर मैंने नींव रखी ,
स्वयं को ब्राह्मण बता ,मैं
परशुराम का शिष्य बना ।
बालमन ने कितने आघात सहे
क्या तुमने भी ये वार सहा !
था मैं पांडवों मे जयेष्ठ
हर कला में उनसे श्रेष्ठ,
होता मैं हस्तिनापुर नरेश
क्या मुझे उचित अधिकार मिला
क्या तुम्हें अपराध बोध हुआ!
जब भी चाहा भला किसी का
शापित वचनों का दंश सहा
गुरु और धरती के शाप ने
शस्त्र विहीन ,रथ  विहीन किया।
भरी सभा  द्रौपदी  ने
सूत पुत्र कह अपमान किया
मत्स्य आँख का भेदन कर
अर्जुन ने स्वयंवर जीत लिया ।
मैंने जो अपमान का घूंट पिया
क्या तुमने  कभी विचार किया !
कठिन समय ,जब कोई न था
दुर्योधन ने मुझे मित्र कहा
अंग देश का राजा बन
अर्जुन से द्वंद युद्ध किया ।
मित्रता का धर्म निभाया
दुर्योधन जब भी गलत करे ,
कुटिलता छोड़ कर , उसको
कौशल से लड़ना बतलाया ।
दानवीर नाम सार्थक किया
इंद्र को कवच कुंडल  दान दिया
तुमने भी तो पाँच पुत्रों
का जीवन मुझसे माँग लिया
क्या इसने तुम्हें  व्यथित किया !
आज ,जब अपनी पहचान जान गया
माँ  ,मित्र का धर्म निभाना होगा
मैंने अधर्म का साथ दिया ,
कलंक सदियों तक सहना होगा
अब तक जो मैंने पीड़ा सही
उसका क्या भान हुआ तुमको !
मेरी मृत्यु तक तुम अब
पहचान छुपा मेरी रखना
अपने भाइयों से लड़ने का
अपराध, मुझे क्षमा करना ।
जीवन भर जलता रहा आग में
चरित्र अवश्य मेरा बता देना
खलनायक  क्यों बना मैं
माँ तुम जग को बतला देना ।
©anita_sudhir


2 comments:

  1. इसलिये कर्मठ व्यक्ति भी नियति के समक्ष नतमस्तक हैं। यहाँ सारा पराक्रम परास्त हो जाता है। फिर भी, मौत से पराजय से पूर्व उससे आँख मिलाने का साहस वीर पुरुष ही करते हैं।
    वे नियति को दिखला जाते है कि देख लो मैंने विपरित परिस्थितियों में भी पहचान बनायी है।
    कर्ण ने यही किया। साधर...

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  2. आ0 आपकी प्रतिक्रिया के लिये ह्रदय तल से आभार

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