तमस
क्यों पिघल रहा विश्वास
क्यों धूमिल हो रही आस
कैसा फैला ये तमस
चहुँ और त्रास ही त्रास ।
कोने में सिसक रही कातरता से
मानवता जकड़ी गयी दानवता से
राह दुर्गम ,कंटको से है रुकावट
जन जन शिथिल हो गया थकावट से।
संघर्ष कर तू आत्मबल से
जिजीविषा को रख प्रबल
भोर की तू आस रख
सत्य मार्ग पर हो अटल ।
आंधियों मे भी जलता रहे
दीप आस की जलाए जा
मन का तमस दूर कर
उजियारा तू फैलाए जा ।
जी सादर अभिवादन
ReplyDeleteबेहद हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteअंधेरे से उजाले को अग्रसर करती सार्थक संदेशात्मक रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सखी।
सादर आभार सखी
ReplyDeleteमन का दीप जले तो तमस ख़त्म हो जाती है ...
ReplyDeleteआशा जरूरी है साथ ...
लाजवाब भावपूर्ण रचना ...
आप की स्नेहिल वचन के लिए हार्दिक आभार आ0
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