सूर्य ग्रहण
दोहा छन्द गीत
उत्कंठा मन में रही ,क्या है इसका राज ।
ग्रहण सूर्य पर क्यों लगे,रहस्य खुलते आज ।।
नील गगन में घूमते,कितने ग्रह चहुँ ओर ।
चक्कर सूरज के लगा,पकड़े रहते डोर ।।
घूर्णन धरती भी करे, धुरी सूर्य को मान।
चाँद उपग्रह धरनि का,वो भी जाने ज्ञान।।
लिये चाँद को घूमती,करे धरा सब काज,
ग्रहण सूर्य पर क्यों लगे,रहस्य खुलते आज ।।
चाँद धरा सब घूमते ,अपनी अपनी राह।
धरा सूर्य के मध्य में,चाँद दिखाता चाह।।
अवसर जब ऐसा हुआ,होता लुप्त उजास।
घटना ये नभ की रहे ,सदा अमावस मास।।
सूर्य ग्रहण इसको कहें ,गिरी धरा पर गाज ।
ग्रहण सूर्य पर क्यों लगे,रहस्य खुलते आज ।।
बंद द्वार मंदिर हुये, करें स्नान अरु दान ।
आस्था की डुबकी में,भूले नहिं विज्ञान।।
फैली कितनी भ्रांतियां,जानें इसका मर्म।
खगोलीय गति पिंड की,विशेष नहिं है धर्म।
तर्क़ शक्ति से सोच के ,पालन रीति रिवाज ।।
ग्रहण सूर्य पर क्यों लगे,रहस्य खुलते आज ।।
©anita_sudhir
दोहा छन्द गीत
उत्कंठा मन में रही ,क्या है इसका राज ।
ग्रहण सूर्य पर क्यों लगे,रहस्य खुलते आज ।।
नील गगन में घूमते,कितने ग्रह चहुँ ओर ।
चक्कर सूरज के लगा,पकड़े रहते डोर ।।
घूर्णन धरती भी करे, धुरी सूर्य को मान।
चाँद उपग्रह धरनि का,वो भी जाने ज्ञान।।
लिये चाँद को घूमती,करे धरा सब काज,
ग्रहण सूर्य पर क्यों लगे,रहस्य खुलते आज ।।
चाँद धरा सब घूमते ,अपनी अपनी राह।
धरा सूर्य के मध्य में,चाँद दिखाता चाह।।
अवसर जब ऐसा हुआ,होता लुप्त उजास।
घटना ये नभ की रहे ,सदा अमावस मास।।
सूर्य ग्रहण इसको कहें ,गिरी धरा पर गाज ।
ग्रहण सूर्य पर क्यों लगे,रहस्य खुलते आज ।।
बंद द्वार मंदिर हुये, करें स्नान अरु दान ।
आस्था की डुबकी में,भूले नहिं विज्ञान।।
फैली कितनी भ्रांतियां,जानें इसका मर्म।
खगोलीय गति पिंड की,विशेष नहिं है धर्म।
तर्क़ शक्ति से सोच के ,पालन रीति रिवाज ।।
ग्रहण सूर्य पर क्यों लगे,रहस्य खुलते आज ।।
©anita_sudhir
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