गीतिका
रीतियाँ नश्वर जगत की यूँ निभाना चाहिए ,
चार दिन की ज़िंदगी का ढंग आना चाहिए ।
राख से पहले यहाँ क्यों हो रहा जीवन धुआँ ,
ध्यान चरणों में सदा प्रभु के लगाना चाहिए ।
देह माटी की बनी अभिमान इस पर क्यों करें ,
मोह माया से परे जीवन बिताना चाहिए ।
ईश है कारक सदा से ,भाव कारक क्यों रखें ,
कर्म से झोली भरें अब पुण्य पाना चाहिए ।
पाप करते जा रहे क्यों ,धर्म के धारक बनें ,
कीर्ति की शोभित पताका ही दिखाना चाहिए ।
रीतियाँ नश्वर जगत की यूँ निभाना चाहिए ,
चार दिन की ज़िंदगी का ढंग आना चाहिए ।
राख से पहले यहाँ क्यों हो रहा जीवन धुआँ ,
ध्यान चरणों में सदा प्रभु के लगाना चाहिए ।
देह माटी की बनी अभिमान इस पर क्यों करें ,
मोह माया से परे जीवन बिताना चाहिए ।
ईश है कारक सदा से ,भाव कारक क्यों रखें ,
कर्म से झोली भरें अब पुण्य पाना चाहिए ।
पाप करते जा रहे क्यों ,धर्म के धारक बनें ,
कीर्ति की शोभित पताका ही दिखाना चाहिए ।
No comments:
Post a Comment