तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Sunday, December 8, 2019






गीतिका 
आधार छंद- गंगोदक (मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी- 212 212 212 212 , 212 212 212 212
समांत- आन, पदान्त - है
बाँध टूटे नहीं धैर्य का इस तरह, ये हुआ देश का घोर अपमान है ।
जो व्यवस्था चले अब उचित रूप में,न्याय में शीघ्रता ही समाधान है ।
लूटते अस्मिता नारि की जो रहे,कोख में मार के मर्द बनते रहे,
काम अरु क्रोध में लिप्त जो नर हुये,भूल क्यों वो गये बेटियाँ मान है।
मेघ ये क्यों सदा ही बरसते रहे,आंधियों की लहर जीवनी बन चली,
आसरा जो दिये मुश्किलों में सदा,नाम के अब उन्हीं का सकल गान  है।
तत्व ये मूल भूले रहे हम सदा,त्याग जग में रहा प्रेम का सार है,
साधना वो करे श्रेष्ठतम की सदा, सभ्यता संस्कृति का जिन्हें भान है ।
भोग करते रहे इस जगत में सदा ,योग क्यों  ईश सँग
हम किये ही नहीं ,
आस सुख की लिये मोह में लिप्त हैं,नाश जो हो अहम का वही ज्ञान है।

स्वरचित
अनिता सुधीर

3 comments:

  1. सुंदर पंक्तियाँ।

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  2. बहुत खूब... ,सादर नमन

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