गीतिका
आधार छंद- गंगोदक (मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी- 212 212 212 212 , 212 212 212 212
समांत- आन, पदान्त - है
मापनी- 212 212 212 212 , 212 212 212 212
समांत- आन, पदान्त - है
बाँध टूटे नहीं धैर्य का इस तरह, ये हुआ देश का घोर अपमान है ।
जो व्यवस्था चले अब उचित रूप में,न्याय में शीघ्रता ही समाधान है ।
जो व्यवस्था चले अब उचित रूप में,न्याय में शीघ्रता ही समाधान है ।
लूटते अस्मिता नारि की जो रहे,कोख में मार के मर्द बनते रहे,
काम अरु क्रोध में लिप्त जो नर हुये,भूल क्यों वो गये बेटियाँ मान है।
काम अरु क्रोध में लिप्त जो नर हुये,भूल क्यों वो गये बेटियाँ मान है।
मेघ ये क्यों सदा ही बरसते रहे,आंधियों की लहर जीवनी बन चली,
आसरा जो दिये मुश्किलों में सदा,नाम के अब उन्हीं का सकल गान है।
आसरा जो दिये मुश्किलों में सदा,नाम के अब उन्हीं का सकल गान है।
तत्व ये मूल भूले रहे हम सदा,त्याग जग में रहा प्रेम का सार है,
साधना वो करे श्रेष्ठतम की सदा, सभ्यता संस्कृति का जिन्हें भान है ।
साधना वो करे श्रेष्ठतम की सदा, सभ्यता संस्कृति का जिन्हें भान है ।
भोग करते रहे इस जगत में सदा ,योग क्यों ईश सँग
हम किये ही नहीं ,
आस सुख की लिये मोह में लिप्त हैं,नाश जो हो अहम का वही ज्ञान है।
हम किये ही नहीं ,
आस सुख की लिये मोह में लिप्त हैं,नाश जो हो अहम का वही ज्ञान है।
स्वरचित
अनिता सुधीर
अनिता सुधीर
सुंदर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबहुत खूब... ,सादर नमन
ReplyDeleteजी आ0 सादर धन्यवाद
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