दोहा छन्द
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मकर संक्रांति
संतति मङ्गल कामना,जननी करे अपार।
लड्डू तिल के बन रहे,सकट चौथ त्यौहार।।
मूँगफली ,गुड़ ,रेवड़ी,धधक रही अंगार ।
करें भाँगड़ा लोहड़ी, हुआ शीत पर वार ।।
मकर राशि दिनकर चले ,करें स्नान अरु दान।
उत्सव के इस देश में ,संस्कृति बड़ी महान ।।
खिचड़ी पोंगल लोहड़ी,अलग संक्रांति नाम।
नयी फसल तैयार है,खुशियां मिले तमाम ।
रंग बिरंगी उड़ रही ,अब पतंग हर ओर ।
मन पाखी बन उड़ रहा ,पकड़े दूजो छोर।।
जीवन झंझावात में ,मंझा रखिये थाम ।
संझा दीपक आरती ,कर्म करें निष्काम ।।
उड़ पतंग ऊंची चली ,मंझा को दें ढील।
मंझा झंझा से लड़े ,सदा रहे गतिशील।।
ऋतु परिवर्तन जानिये ,निकट बसन्त बहार।
पीली सरसों खेत में ,धरा करे श्रृंगार ।।
अनिता सुधीर
बहुत सुंदर दोहे है त्योहार को खूबसूरती से पिरोया है आपने।
ReplyDeleteसादर।
जी हार्दिक आभार
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