*वर्ष छन्द वर्णिक
222 221 121*
कैसा झूठा है व्यवहार।
छीने दूजे के अधिकार।
रोटी की होती नित रार।
होते ही जाते व्यभिचार,
भूले बैठें आदर मान ।
भूले सारे नेक विधान।
मूँदे बैठे नैन कपाट
कैसे होगा ,प्रश्न विराट।
कैसे पायें रूप अपार।
सोचो कैसे हो उपकार ।
सोचें ये ज्ञानी जन आज।
हो कैसे कल्याण समाज।
लेना ही होगा प्रतिकार ।
लायेगा ये कौन बहार ।
छोड़ोगे जो भोग विलास,
तो आयेगा भोर उजास ।
©anita_sudhir
222 221 121*
कैसा झूठा है व्यवहार।
छीने दूजे के अधिकार।
रोटी की होती नित रार।
होते ही जाते व्यभिचार,
भूले बैठें आदर मान ।
भूले सारे नेक विधान।
मूँदे बैठे नैन कपाट
कैसे होगा ,प्रश्न विराट।
कैसे पायें रूप अपार।
सोचो कैसे हो उपकार ।
सोचें ये ज्ञानी जन आज।
हो कैसे कल्याण समाज।
लेना ही होगा प्रतिकार ।
लायेगा ये कौन बहार ।
छोड़ोगे जो भोग विलास,
तो आयेगा भोर उजास ।
©anita_sudhir
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