Friday, January 17, 2020

*वर्ष छन्द  वर्णिक
222   221   121*

कैसा झूठा है व्यवहार।
छीने दूजे के अधिकार।
रोटी की होती नित रार।
होते ही जाते व्यभिचार,

भूले बैठें आदर मान ।
भूले सारे नेक विधान।
मूँदे बैठे नैन कपाट
कैसे होगा ,प्रश्न विराट।

कैसे पायें रूप अपार।
सोचो कैसे हो उपकार ।
सोचें  ये ज्ञानी जन आज।
हो कैसे कल्याण समाज।

लेना ही होगा प्रतिकार ।
लायेगा ये कौन बहार ।
छोड़ोगे जो भोग विलास,
तो आयेगा भोर उजास ।

©anita_sudhir

No comments:

Post a Comment

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...