जिजीविषा
क्यो पिघल रहा विश्वास
क्यो धूमिल हो रही आस
कैसा फैला ये तमस
चहुँ और है त्रास ही त्रास ।
कोने में सिसक रही कातरता से
मानवता जकड़ी गयी दानवता से
राह दुर्गम ,कंटको से है रुकावट
जन जन शिथिल हो गया थकावट से।
संघर्ष कर तू आत्मबल से
जिजीविषा को रख प्रबल
भोर की तू आस रख
सत्य मार्ग पर हो अटल ।
आंधियों मे भी जलता रहे
दीप आस की जलाए जा
मन का तमस दूर कर
उजियारा तू फैलाए जा ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी सादर अभिवादन
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