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अखंडता अरु एकता ,भारत की पहचान।
विभिन्न संस्कृति देश की,इस पर है अभिमान।
जाति,धर्म निज स्वार्थ दे,गद्दारी का घाव ।
देशभक्ति ही धर्म हो ,रखें एकता भाव ।
मातृभूमि रज भाल पर ,वंदन बारम्बार।
अमर तिरंगा हाथ में,रहे एकता सार ।
सर्व धर्म समभाव हो ,करिये सभी विचार।
भारत के निर्माण में ,बहे एकता धार। ।
देशप्रेम की अग्नि में ,जीवन समिधा डाल।
तेल एकता का पड़े ,उन्नत होगा काल ।।
अपने हित को साधिये,सदा देश उपरान्त ।
जयभारत उद्घोष से ,हो एका सिद्धांत ।
अनिता सुधीर
सुन्दर दोहे
ReplyDeleteआ0 सादर अभिवादन
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (२६-०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- ५ (चर्चा अंक -३५९२) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
सुंदर रचना,
ReplyDeleteपरंतु जिस तरह से देश का नौजवान इन दिनों दो गुटों में विभाजित है उससे क्या राष्ट्र का विकास संभव है बड़ा सवाल मन में यह भी है ।
जी सत्य
Deleteबहुत ही सुंदर भाव संजोये बेहतरीन रचना । गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीया
ReplyDeleteआ0 आपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteसर्व धर्म समभाव हो ,करिये सभी विचार।
ReplyDeleteभारत के निर्माण में ,बहे एकता धार। ।
बहुत सुंदर संदेश.... , गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
हार्दिक आभार आ0
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