तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Saturday, January 25, 2020

वैरागी

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मनुष्यत्व को छोड़
देवत्व को पाना ही
क्या वैरागी कहलाना ।
पंच तत्व निर्मित तन
पंच शत्रुओं से घिरा
 जग के प्रपंच में लीन
इस पर विजय
संभव कहाँ!
हिमालय की कंदराओं में
जंगल की गुफाओं  में
गरीब की कुटिया में
या ऊँची अट्टालिकाओं में!
कहाँ मिलेगा वैराग्य
क्या करना होगा सब त्याज्य
क्या बुद्ध बैरागी रहे
या यशोधरा कर्तव्यों को
साध वैरागिनी रहीं !
गेरुआ वसन धारण किये
हाथ में कमंडल लिये
सन्यासी बने
वैरागी बन पाए
या संसारी संयमी हो
कर्त्तव्य साधता रहा
वही वैरागी रहा ।
ज्ञान प्राप्ति की खोज
दर दर भटकते लोग
निर्लिप्त में लिप्त
वो वैरागी
या जो लिप्त  में निर्लिप्त
हो जाये,
वो वैरागी कहलाये।
©anita_sudhir

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