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बिंदी माथे पर सजा ,कर सोलह श्रृंगार ।
पिया तुम्हारी राह अब ,अखियां रही निहार ।।
बिस्तर पर की सिलवटें,बोलें पूरी बात ।
साजन हैं परदेश में ,मिला बड़ा आघात ।
पीड़ा मन की क्या कहूँ,रहते सदा उदास।
कैसे दिन अब काटते ,लिये मिलन की आस ।।
तुम बिन सूना जग लगे,भूल गये दिन रात ।
खान पान की सुधि नहीं,सुख दुख की क्या बात।।
विरह अग्नि में जल रहे ,मिले तनिक ही चैन।
चंचल मन व्याकुल हृदय,हर पल है बैचैन ।।
विरह पीर में तन जले , कीजे कुछ उपचार ।
आओ प्रियतम पास में,तुम जीवन आधार।।
©anita_sudhir
बिंदी माथे पर सजा ,कर सोलह श्रृंगार ।
पिया तुम्हारी राह अब ,अखियां रही निहार ।।
बिस्तर पर की सिलवटें,बोलें पूरी बात ।
साजन हैं परदेश में ,मिला बड़ा आघात ।
पीड़ा मन की क्या कहूँ,रहते सदा उदास।
कैसे दिन अब काटते ,लिये मिलन की आस ।।
तुम बिन सूना जग लगे,भूल गये दिन रात ।
खान पान की सुधि नहीं,सुख दुख की क्या बात।।
विरह अग्नि में जल रहे ,मिले तनिक ही चैन।
चंचल मन व्याकुल हृदय,हर पल है बैचैन ।।
विरह पीर में तन जले , कीजे कुछ उपचार ।
आओ प्रियतम पास में,तुम जीवन आधार।।
©anita_sudhir
जी आ0 सादर अभिवादन
ReplyDeleteबसंत में यह वेदना भला कौन स्त्री सहन कर पाती है ? सुंदर सृजन।
ReplyDeleteजी सादर अभिवादन आ0
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-02-2020) को 'गूँगे कंठ की वाणी'(चर्चा अंक-3614) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
जी हार्दिक आभार
Deleteजी सादर आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह !सखी बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद सखि
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteविरह वेदना पर बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति।
जी हार्दिक आभार
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