तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Sunday, December 20, 2020

गजल

 गजल

2122   2122  212

रतजगे वो इश्क़ के भी खूब थे ।
दिलजलों के अनकहे भी खूब थे।।

ख़्वाब पलकों पर सजाते जो रहे,
इश्क़ तेरे फलसफे भी खूब थे ।

अश्क आँखो से बहे थे उन दिनों
बारिशों के फायदे भी खूब थे ।

कब तलक हम साथ यों रहते यहाँ
दरमियाँ ये फासले भी  खूब थे ।

जी रहे तन्हाई में हम क्यों यहाँ
आप के तो कहकहे भी खूब थे ।

23 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 21 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी रहे तन्हाई में हम क्यों यहाँ
    आप के तो कहकहे भी खूब थे ।
    .... बहुत-बहुत सुंदर गजल।।।।।

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  3. अश्क आँखो से बहे थे उन दिनों
    बारिशों के फायदे भी खूब थे ।

    –सुन्दर लेखन

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  4. बहुत सुंदर गज़ल प्रिय अनीता जी।
    सादर।

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    1. श्वेता जी हार्दिक आभार

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  5. बहुत सुंदर रचना

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  6. बहुत बहुत सुन्दर मधुर ।

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  7. बहुत सुन्दर

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  8. बङे दिनों में कहकहों की गूँज सुनी !
    चेतना खंगाल गई ।
    धन्यवाद ।

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