तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Thursday, December 24, 2020

गीत

गीत 

आल्हा  छन्द  

सभ्य मनुज से एक प्रश्न है
कौन तुम्हें देता अधिकार
पथ प्रशस्त करती है नारी
समझे क्यों अबला लाचार

पन्ना का बलिदान लिए वह
आज निभाती माँ का फर्ज
शौर्य लिए रानी लक्ष्मी का
आज चुकाती माटी  कर्ज
चूड़ी पायल पहने नारी
आज उठाती है हथियार।।
पथ ...

सहना अब अन्याय नही है
हो हर नारी का अभियान
जग जननी दुर्गा काली हो
आज जगा अपना अभिमान
लांछन सहती जीवन भर क्यों
आज उन्हीं पर कर दो वार ।।
पथ प्रशस्त..

अग्नि परीक्षा अब मत देना
नित्य लिखो नूतन इतिहास
अपने हिस्से का सूरज ले
मन में रखना अब विश्वास
नव पीढ़ी को नव्य दिशा दे
शुद्ध करे उनका व्यवहार।।

अनिता सुधीर आख्या

5 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  2. आदरणीया अनीता सुधीर जी, इस अच्छी सी कृति हेतु बधाई स्वीकार करें। ।।।।
    आगामी नववर्ष की अग्रिम शुभकामनायें। ।।

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    1. हार्दिक आभार आ0
      आपको भी नववर्ष की शुभकामनाएं

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