तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Sunday, March 28, 2021

होलिका दहन

 


नवगीत


होलिका दहन


आज का प्रह्लाद भूला

वो दहन की रीत अनुपम।।


पूर्णिमा की फागुनी को

है प्रतीक्षा बालियों की

जब फसल रूठी खड़ी है

आस कैसे थालियों की 

होलिका बैठी उदासी 

ढूँढती वो गीत अनुपम।।


खिड़कियाँ भी झाँकती है

काष्ठ चौराहे पड़ा जो

उबटनों की मैल उजली

रस्म में रहता गड़ा जो

आज कहती भस्म खुद से

थी पुरानी भीत अनुपम।।


बांबियाँ दीमक कुतरती

टेसुओं की कालिमा से

भावना के वृक्ष सूखे

अग्नि की उस लालिमा से

सो गया उल्लास थक कर

याद करके प्रीत अनुपम।।


अनिता सुधीर आख्या

लखनऊ





12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 28 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए जी हार्दिक आभार

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  2. बहुत सुन्दर रचना...होली की शुभकामनाएँ

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    रंगों के महापर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. जी आ0 हार्दिक आभार
      आपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. बांबियाँ दीमक कुतरती

    टेसुओं की कालिमा से

    भावना के वृक्ष सूखे

    अग्नि की उस लालिमा से

    सो गया उल्लास थक कर.

    सच ही आज वो उत्साह और उल्लास कहीं दीखता नहीं है .... सुन्दर नवगीत

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  5. एक सुंदर रचना

    आपको होली की महापर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं परिवार सहित by सुगना फाउंडेशन

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  6. बहुत सुंदर गीत

    शुभकामनाएं

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