कुंडलिया
पिछड़े अगले खेल में, संसद में सब एक।
अगले को पिछड़ा करें, कौन विचारे नेक।।
कौन विचारे नेक, जाति की सीढ़ी चढ़ते।
नीति नियम हों एक, तभी सब आगे बढ़ते।।
आरक्षण की चोट, लाभ से क्यों सब बिछड़े।
सबको कर दो उच्च, मिटा दो सारे पिछड़े।।
अवसर सबको ही मिले, यही विचारो आज।
आगे बढ़ना नीति में, उन्नत सकल समाज।।
उन्नत सकल समाज, मिले वंचित को सुविधा।
भारत में सब एक, करें क्यों इसमें दुविधा।।
होंगें तभी स्वतंत्र, नहीं हो कोई अंतर।
चलो समय के साथ, दिला दो सबको अवसर।।
अनिता सुधीर आख्या
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (12-08-2021 ) को धरती पर पानी ही पानी (चर्चा अंक 4144) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हार्दिक आभार आ0
Deleteसामायिक , चिंतन परक सुंदर कुंडलिया,
ReplyDeleteसार्थक सृजन सखी।
सही लिखा है इन कुंडलियों के माध्यम से ... काश ऐसा हो सके ...
ReplyDeleteसब एक हो सकें ...
आप का हार्दिक आभार
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteवाह! अत्यंत ही सार्थक सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअवसर सबको ही मिले, यही विचारो आज।
ReplyDeleteआगे बढ़ना नीति में, उन्नत सकल समाज।।
लाजवाब कुण्डलियाँ
वाह!!!
हार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत सुंदर कुण्डलियाँ
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteजाति और भाषाई भेदभाव के दंश से सारा देश विषाक्त पड़ा है - - जब तक हम सभी एक मानवीय छत्र के नीचे न आएं देश परिपूर्ण उन्नति करने में विफल होगा - - सार्थक रचना।
ReplyDeleteजी सत्य कहा
Deleteहार्दिक आभार आ0
वाह
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसत्य अति उत्तम
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