तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Wednesday, August 11, 2021

आरक्षण

कुंडलिया

पिछड़े अगले खेल में, संसद में सब एक।
अगले को पिछड़ा करें, कौन विचारे नेक।।
कौन विचारे नेक, जाति की सीढ़ी चढ़ते।
नीति नियम हों एक, तभी सब आगे बढ़ते।।
आरक्षण की चोट, लाभ से क्यों सब बिछड़े।
सबको कर दो उच्च, मिटा दो सारे पिछड़े।।


अवसर सबको ही मिले, यही विचारो आज।
आगे बढ़ना नीति में, उन्नत सकल समाज।।
उन्नत सकल समाज, मिले वंचित को सुविधा।
भारत में सब एक, करें क्यों इसमें दुविधा।।
होंगें तभी स्वतंत्र, नहीं हो कोई अंतर।
चलो समय के साथ, दिला दो सबको अवसर।।

अनिता सुधीर आख्या




19 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (12-08-2021 ) को धरती पर पानी ही पानी (चर्चा अंक 4144) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. सामायिक , चिंतन परक सुंदर कुंडलिया,
    सार्थक सृजन सखी।

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  3. सही लिखा है इन कुंडलियों के माध्यम से ... काश ऐसा हो सके ...
    सब एक हो सकें ...

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    1. आप का हार्दिक आभार

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  4. वाह! अत्यंत ही सार्थक सृजन।

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  5. हार्दिक आभार आ0

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. अवसर सबको ही मिले, यही विचारो आज।
    आगे बढ़ना नीति में, उन्नत सकल समाज।।
    लाजवाब कुण्डलियाँ
    वाह!!!

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  8. बहुत सुंदर कुण्डलियाँ

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  9. जाति और भाषाई भेदभाव के दंश से सारा देश विषाक्त पड़ा है - - जब तक हम सभी एक मानवीय छत्र के नीचे न आएं देश परिपूर्ण उन्नति करने में विफल होगा - - सार्थक रचना।

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    1. जी सत्य कहा
      हार्दिक आभार आ0

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  10. सत्य अति उत्तम

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