तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Friday, August 20, 2021

चीखें



चीखें
**
चीखें 
बच्चों की
अब सुनाई नहीं पड़ती 
खोमचे वाला 
गली से गुजरता है जब
गरीबी ने माँ को
चुप कराने का हुनर 
सिखा दिया होगा
*
खामोश शहरों की
चीखती रातें
चूड़ियों के टूटने की आवाज 
तन चीत्कार कर उठे
मुफलिसी में
बूढ़े माँ बाप की दवाईयाँ
और आत्मा की चीखें शांत
**
अनवरत 
अंदर चीखें रुदन करती हुईं
अधर मौन 
और फिर कागज चीखते हुए



अनिता सुधीर आख्या

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