चीखें
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चीखें
बच्चों की
अब सुनाई नहीं पड़ती
खोमचे वाला
गली से गुजरता है जब
गरीबी ने माँ को
चुप कराने का हुनर
सिखा दिया होगा
*
खामोश शहरों की
चीखती रातें
चूड़ियों के टूटने की आवाज
तन चीत्कार कर उठे
मुफलिसी में
बूढ़े माँ बाप की दवाईयाँ
और आत्मा की चीखें शांत
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अनवरत
अंदर चीखें रुदन करती हुईं
अधर मौन
और फिर कागज चीखते हुए
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteजीवन के कुछ सत्य लिख दिए इन क्षणिकाओं में ...
ReplyDeleteसादर नमन आ0
Deleteमार्मिक
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