तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Wednesday, January 19, 2022

दलबदल



गीत

 दलबदल
 
चुनावों का समय आया।
पुराना दल कहाँ भाया।।

टिकट जब दूर होता है।
भरोसा धैर्य खोता है।।
कहाँ फिर ठीकरा फोड़े।
विधायक को कहाँ तोड़े।।
ठगी जनता भ्रमित सुनती
सभी ने झूठ जो गाया।।
चुनावों का समय आया।
पुराना दल कहाँ भाया।।

लगाती दौड़ सत्ता जब।
मुसीबत में प्रवक्ता तब।।
कहाँ से तर्क वह लाए
कि बेड़ा पार कर पाए।
मची तकरार अपनों में
तुम्हीं ने ही अधिक खाया।।
चुनावों का समय आया।
पुराना दल कहाँ भाया।।

बड़े ही धूर्त बैठे हैं ।
सभी के कथ्य ऐंठे हैं।।
बदलते रंग सब ऐसे।
मरें कब लाज से वैसे।।
कहानी पाँच वर्षों की
अजब यह दलबदल माया।।
चुनावों का समय आया।
पुराना दल कहाँ भाया।।

अनिता सुधीर आख्या























13 comments:

  1. बहुत सही लिखा है आपने। चुनाव आते ही मौकापरस्त नेता अपना दल बदल ही लेते हैं।

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  2. सटीक एवं समसामयिक 👏👏👏💐💐

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  3. हार्दिक आभार आ0

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  4. अति उत्तम । सटीक।।

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