स्त्री बाजार नहीं है।
वो व्यापार नहीं है।।
क्यों उपभोग किया है
वो लाचार नहीं है।।
नर से श्रेष्ठ सदा से
ये तकरार नहीं है।।
उसने मौन सहा जो
कोई हार नहीं है ।।
आँगन रिक्त रहे जब
फिर संसार नहीं है।
अनिता सुधीर आख्या
मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...
उसने मौन सहा जो, कोई हार नहीं है🙏नमन
ReplyDeleteअत्यंत उत्कृष्ट एवं संवेदनशील कविता 💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-03-2022) को चर्चा मंच "नारी का सम्मान" (चर्चा अंक-4364) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर संवेदनशील कविता...
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