पद्मश्री तुलसी गौड़ा..
धन्य रही भारत की धरती, गौरवशाली है पहचान।
व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व बना कर, जो गाती नित अनुपम गान।।
पथ में कब कठिनाई आती, जब करते हैं ढृढ़ संकल्प।
दूर भगाते बाधा को फिर, चाहे साधन हों अति अल्प।।
विश्वकोश जंगल की कहते, तुलसी गौड़ा नाम महान।
पर्यावरण सुरक्षा में जो, देता अपना जीवन दान।।
जन्म लिया था कर्नाटक में, वृक्षारोपण ही अभियान।
निर्धनता कब आड़े आयी, "वनदेवी" बन रखतीं ध्यान।।
नित्य दिहाड़ी मजदूरी कर, रचा अनोखा यह इतिहास।
वन्यजीव की देखभाल कर, जंगल में ढूंढें उल्लास।।
मातृ वृक्ष को पहचानें जब, करतीं बीजों को एकत्र।
फिर बीजों के निष्कर्षण से, पौध लगातीं वो सर्वत्र।।
सिद्ध किया तुलसी गौड़ा ने,विधिवत शिक्षा कब अनिवार्य।
अठहत्तर की अभी उमर कम, दौड़ रहा नित उनका कार्य।
बिरले तुलसी गौड़ा जैसे, सरल सहज जिनका व्यवहार।
पुरस्कार हैं झोली में पर ,जीवन सादा उच्च विचार।।
पद्मश्री सम्मान मिला है,और मिले कितने ईनाम।
प्रकृति प्रेम में तन अर्पित कर, लिखतीं जीवन का आयाम।।
हाड़-माँस के जर्जर तन पर, पहन आदिवासी पोशाक।
नंगे पैर भवन में पहुँची, रखे इरादे अपने पाक।।
जंगल की पगडंडी से चल, राष्ट्र भवन की है कालीन।
मिली प्रेरणा जीवन से यह, सदा कर्म रहते आधीन।।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteभावपूर्ण, अद्भुत आल्हा छंद सृजन🙏 उत्कृष्ट चित्रण🙏
ReplyDeleteअति सुंदर छंद बद्ध चरित्र-चित्रण 💐💐💐🙏🏼🙏🏼
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