*भाग्यशालिनी*
(वो माँ भाग्यशालिनी है जब स्वयं की संतान माँ का रूप धर उनकी देखभाल करे)
सौभाग्य सुलाता माता को
जब बच्चे लोरी गाएँ।
मेरी माँ मेरे अंदर है
सदा रही उनके जैसी
चक्र समय का चलता जाता
संतति राह चले वैसी
मातु भाव में संसार निहित
शब्द नहीं इसको पाएँ।।
ऊँगली पकड़े चलना सीखा
कदम कदम पर डाँट पड़ी
हाथ पकड़ अब सुता चलाये
निर्देशों की लगी झड़ी
स्वर्ग मिला था मातु गोद में
सुत ये अब भान कराये।।
पीर मातु ने सदा छुपाई
कितने कष्ट सहे थे तब
व्यथा झेल कर कष्ट छुपाते
वही करें औलादें अब
जब संतति माँ का रूप धरें
हृदय झूम नभ छू आए।
अनिता सुधीर
बहुत सुंदर भाव हैं।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत वर्णन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है भाव मां का प्यार कभी नहीं भुलाया जा सकता
ReplyDeleteजब संतति मां का रूप धरे। भाव पूर्ण
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी सृजन 💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 09 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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जब हम स्वयं माँ-बाप बनते हैं तब माँ क्या होती है, अच्छे से समझ पाते हैं
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर 👌
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